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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३६ अ. श.१ ३.१ कृ कृतयुग्मद्वीन्द्रियजीवनि० ५९५ वा द्वीद्रिय जीवाः 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' नो सम्यग् मिथ्यादृष्टयः। 'नाणी वा अन्नाणी वा' ज्ञानिनो वा अज्ञानिनो वा भवन्ति द्वीन्द्रियाः । 'नो मणयोगी' नो मनोयोगिनो भवन्ति, 'वय जोगी वा, कायजोगी वा, वचो योगिनो वा भवन्ति काययोगिनो वा भवन्ति 'ते णं भंते ! कडजुम्म कडजुम्म बेंदिया कालो केव चिरं होति' ते खल भदन्त ! कृतयुग्म कृतयुग्म द्वीन्द्रियाः जीवाः कालतः किय चिरं भवन्ति, इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं संखेज्ज कालं' जघन्येन एक समयम् उत्कर्षेण संख्येयं कालम्' ठिई जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं वारससंवच्छराइ' स्थिति जघन्येन एक समयप्रमाणा उत्कर्पण तु द्वादशसंवत्सररूपा भवतीति । 'आहारो नियमं छदिसि' आहारो नियमात् पइदिशमाश्रित्य पइदिग्भ्यः इत्यर्थः द्वीन्द्रिच्छादिट्ठी' ये मिश्रदृष्टि नहीं होते हैं । 'नाणी वा अन्नाणी वा' ये ज्ञानी अथवा अज्ञानी होते हैं। 'जोमणो जोगी' से मनोयोगी नहीं होते हैं। 'वयजोगी जायजोगी वा वचनयोगी और काययोगी होते हैं। 'ते ण मते ! प.उम्भ क उजुरा वेईदिया कालमो केवच्चिर होति' हे भदन्त ! ये कृतयुग्म कृतयुग्म बीन्द्रिय जीव कितने समय तक रहते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जहन्नेण एक समय उक्कोसेण संखेज कालं' हे गौतम ! ये इस रूप में जघन्य से तो एक समय तक रहते हैं और उत्कृष्ट ले संख्यात काल तक रहते हैं। 'ठिई जहन्नेण एक्क लमयं उक्कोलेण बारस संबच्छराइ इनकी स्थिति जघन्य से एक समय की और उत्कृष्ट से १२ वर्ष की होती
छ, 'नो सम्मामिच्छदिट्ठी' २३॥ सभ्यम् मिथ्यादृष्टीपणा डाता नथी. मेरो भिटीपाडता नथी. 'नाणी वा अन्नाणी वा' मा ज्ञानी अथवा मज्ञानी डाय छे. 'णो मणोजोगी' मा मनायोगवा डाता नथी. 'वयजोगी कायजोगी वा' क्यन यासवाणामने आय योगाय छे. 'वेण भते ! कहजुम्म कडजुम्म वे दिया कालओं केवच्चिर होति' ९ मापन् २मा तयुग्म कृतयुग्म मे छन्द्रिय. વાળા છ ક ળની અપેક્ષાથી કેટલા સમય સુધી રહે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतमस्वामीन ४९ छ -'गोयमा । जहण्णेण एकक समय उक्कोसेण संखेज्ज काल' गौतम ! ! ३५थी तो न्यथा तो ये समय संधी मने टथी सध्यात सुधा २९ छे. 'ठिई जहण्णेण एक समयउकोसेण वारस संवच्छराइ' तमानी स्थिति धन्यथा मे सभयनी मने थी मा२ १२ वषना डाय छे. 'आहारो नियम छदिमि' तेगा माहा२ नियमधी