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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ.१ सू०२ कृ.कृतयुग्मैकेन्द्रियाणामुत्पत्यादिकम् ५२३ निःश्वासवन्तः अपर्याप्तावस्थायां वा भवन्ति । 'आहारगा वा अणाहारगा वा ते जीवा आहारका वा, भवन्ति तथा अनाहारका वा विग्रहममयापेक्षया भवन्ति । 'नो विरया' नो विरताः सर्वविरतिमंतो वा न भवन्ति । 'अविरया' अविरताः सर्वविरति रहिता भवन्ति, 'नो विरयाविरया वा' नो विरताऽविरता वा देशविरता अपि न भवन्ति । 'सकिरिया' सक्रियाः क्रिया सहिता एव भवन्ति । 'नो अकिरिया' नौ अक्रियाः क्रियारहिता न भवन्ति । 'सत्तविहवंधगा वा अट्टविहबंधगावा' आयुर्वर्जानां सप्तविधकर्मणां बन्धका वा भवन्ति अष्टविधकर्मणां बन्धका वा भवन्ति । 'आहारसन्नी वउत्ता वा जाव परिग्गहसन्नोवउत्तावा' आहारसंज्ञोपयुक्ता वा भवन्ति यावत्परिग्रहउसासनीसासगा वा' नो उच्छवास नि:श्वासवाले भी होते हैं। हां अपर्याप्तावस्था में इन के उच्छवास निःश्वास नहीं होते हैं । इसलिये उस अवस्था में इनसे रहित होते हैं। अर्थात् उच्छास नि:श्वास से रहित होते हैं। 'आहारगा वा अणाहारगावा' ये जीव आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। यहां अनाहारकता विग्रह गतिकी अपेक्षा से कही गई है ऐसा जानना चाहिये । 'नो विरया' ये सर्व विरति सम्पन्न नहीं होते हैं । किन्तु 'अविरया' सर्व विरति से रहित ही होते हैं । इसी प्रकार ले ये 'नो विरयाविरया' देशविरति से भी सहित नहीं होते हैं 'सकिरिया, नो अकिरिया' ये क्रियावाले ही होते हैं अक्रियावाले नहीं होते हैं । 'सत्तविह बंधगा वा अविह बंधगा वा आयु को छोड़कर शेष सानों कर्म प्रकृतियों के भी बन्धक होते हैं 'और आठों कर्म प्रकृतियों के भी बन्धक होते हैं । 'आहारसन्नोवउत्ता नीसासगावा' २७पास निश्वास विनाना Bात नथी १७ अपर्याप्त सप સ્થામાં તેઓને ઉચ્છવાસ નિશ્વાસ હોતા નથી. તેઓ એ અવસ્થામાં ઉચ્છવાસ निश्वास दिनाना राय छे. 'आहारगा वा अणाहारगा वा' ते ४ मा २४ પણ હોય છે અને અનાહારક પણ હોય છે. અહિયાં અનાહારક પણ વિગ્રહ
तिनी अपेक्षायी डस छे. तेभ. सभा 'नो विरया' तेयो सब विति पाहत नथी. ५२तु 'अविरया' स वि२ति बिनाना हाय छे. मेकर प्रमाण 'नो विरयाविरया' तो शिविरति ५५ हात नथी. सकिरिया, नो अकिरिया' या यिावर डाय छ, मठियावा हाता नथी. 'सत्तविहब धगा वा अट्ठविहब धगा वा' मायु में प्रतित हैन બાકીની સાતે કર્મપ્રકૃતિને બંધકરવાવાળા હોય છે. અને આઠે કર્મપ્રકૃતિને ५५ ४२वावा ५५ उय छे. 'आहारसन्नोवउत्ता वा जाव परिगहसन्नोवत्ता