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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ० १ सू०२ कृ. कृतयुग्मै केन्द्रियाणामुत्पत्यादिकम् ५२१, तत्र देवानामुत्पत्ति सम्मवाद इति । 'नो सम्प'ि ते जीशः समरदृष्टयो न भवन्ति तथा - 'नो सम्मामिच्छादिड्डी' नो सम्यग्यिायो मिश्रयोऽपि न भवन्ति अपितु - 'मिच्छादिट्ठी' मिध्यादृष्टयो भवन्ति ते जीवाः । 'नो नाणी अन्नाणी'. नो ज्ञानिनो भवन्ति ते जीवाः किन्तु अज्ञानिनो भवन्ति त्रापि 'नियमं दुअन्नाणी, नियमा' नियमाद् अज्ञानद्वयवन्तो भवन्ति, तदेव दर्शयति- 'तं जहा ' तद्यथा 'म अन्नाणीय सुय अन्नाणी य' मत्पज्ञानिनश्च भवन्ति तथा श्रुनाज्ञानिनश्च भवन्ति । ' णो मणोजोगी णो वइजोगी' नो मनोयोगिनो भवन्ति नो न चा, Tataगिनो भवन्ति । किन्तु 'कायजोगी' केवलं काययोगिन एव भवन्ति । 'सागारोवउत्ता वा अगागारोवडत्ता वा, साकारोरयोगवन्ता वा भवन्ति
क्योंकि पृथिवी, अप और वनस्पतिकायिकों को अपर्याप्तावस्था में इन लेश्याओं का सद्भाव कहा गया है। इस का कारण यह है कि इनमें देवों की उत्पत्ति का सम्भव है । 'नो सम्मदिट्ठी' ये जीव सम्पदृष्टि नहीं होते हैं तथा - 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' मिश्र दृष्टि भी नहीं होते हैं. किन्तु 'मिच्छादिट्टी' मिध्यादृष्टि होते हैं । 'नो नाणी अन्नाणी' ये ज्ञानी नहीं होते हैं । किन्तु अज्ञानी ही होते हैं, इनमें भी 'नियम' दुअन्नाणी' इस के दो अज्ञान नियम से होते हैं 'त जहा' जैसे 'मह अन्नाणी य सुय अन्नाणी य' नियम से सत्यज्ञान और श्रुताज्ञान ऐसे ये दो ही ज्ञान होते हैं 'णो मनोजोगी, जो वइजोगी' इसी प्रकार से इन में केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय होने से ये मनोयोगी और वचनयोगी नहीं होते हैं किन्तु 'कायजोगी' काययोगी ही होते हैं 'सागारोवन्ता वा अणागारोवउत्ता वा' ये
અષ્ઠાયિક, અને વનસ્પતિકાયિકાને અપર્યાપ્ત અવસ્થામા આ લેશ્યાએ સ ભાવ કહેવામાં આવેલ છે તેનુ કારણ એ છે કે-તેએામા દેવાની ઉત્પત્તિને સ’ભવ हाय 'नो सम्मदिट्ठी' या करे। सभ्यम्भष्टिवाणा होता नथी 'नो सम्मामिच्छादिट्ठी' मिश्र द्दष्टिवाणा यायु होता नथी परतु 'मिच्छादिट्ठी' सिनाहष्टिवाणा होय छे. 'नो नाणी' तेथे। ज्ञानी होता नथी. 'अन्नाणी नियमा' परंतु तेथे નિયમથી અજ્ઞાની જ होय हे. तेमां पाशु तेथे । 'नियम दुअण्णाणी' મતિઅજ્ઞાન અને શ્રુતજ્ઞાન એ રીતે એજ અજ્ઞાનેાવાળા નિયમથી હાય છે. मेवात सूत्रारे 'मड अन्नणीय सुयअन्नोणी' या सूत्रपाठ द्वारा समजावी छे. 'णो मणोजोगी, णोवइजोगी' से रीते तेथेोभा देवण गोड स्पर्शन इन्द्रिय होवाथी भनो योगवाजा मने वथन येोगवाणाडे ता नथी परंतु 'काययोगी'તેએ કાયયાગવાળા જ होय हे 'सागारोवउत्ताना अणागारोवउत्तावा' तेथे।
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