________________
-
-
-
४७४
भगवतीसरे प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पन्नत्ता' पञ्चविधा:-पश्चपकारकाः पृथिवीकायिकादि वनस्पति कायिकान्ताः कृष्णलेश्या एकेन्द्रियाः प्रज्ञप्ताः कथिताः। 'भेओ चउक्को जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाच वणस्सइकाइयत्ति' भेद श्चतुष्कको यथा कृष्णलेश्यैकेन्द्रियशते त्रयसिंशत्तमे शतके द्वितीये एकेन्द्रियशते यावद् वनस्पतिकायिका इति ! कृष्णलेश्य पृथिवीकायिकादारभ्य कृष्णलेश्य वनस्पतिकायिकानां पञ्चानामपि सूक्ष्म-वादर-पर्याप्ता-पर्याप्तरूपा चत्वारो भेदाः, इति
शतक ३४ में दूसरा एकेन्द्रिय शतक २ 'कइविहा णं भंते ! कण्हलेस्सा एगिंदिया पण्णत्ता' ३४-११
टीकार्थ---'काविहा णं भंते। कण्हलेस्सा एगिदिया पमत्ता हे भदन्त! 'कृष्णलेझ्यावाले एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? 'गोयमा !' पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया पण्णत्ता' हे गौतम ! कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के कहे गये हैं। और ये पृथिवीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक तक हैं। 'भेमो घउक्को जहा कण्हलेस्स एगिदियसए जाव वणसहकाइयत्ति' इन के चार भेद कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रियशतक में कहे अनुसार यावत् वनस्पतिकायिक तक जानना चाहिये अर्थात् ३३ वें शतक में द्वितीय एकेन्द्रिय शतक में यावत् वनस्पतिकायिक तक पांचों कृष्णलेश्यावाले एलेन्द्रियों के सूक्ष्म चादर पर्याप्त और अपर्याप्त रूप से
બીજા એકેન્દ્રિય શતકને પ્રારંભ – 'कइविहा ण भंते ! कण्हलेस एगिदिया पण्णत्ता' त्याह
- 'कइविहा ण भंते ! कण्हलेस्सा एगि दिया पण्णत्ता' ३ मापन वेश्यामा सन्द्रिय का प्रारना डेवामी मावस छ ? 'गोयमा ! पंचविहा कण्हलेस एगि दिया पन्नत्ता' है गौतम ! वेश्यावाणा मेन्द्रिय જી પાંચ પ્રકારના કહેવામાં આવ્યા છે. અને તે પૃથ્વીકાયિકથી લઈને વનસ્પતિ आयि सुधीना सभ०४११. 'भेओं चक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयति' गुलेश्यावास मेन्द्रिय शतमi प्रमाणे ते माना ચાર ભેદે યાવતુ વનસ્પતિકાય સુધી સમજવા. અર્થાત ૩૩ તેત્રીશમાં શતકના બીજા એકેન્દ્રિય શતકમાં યાવત્ વનસ્પતિકાય સુધી પાંચ પ્રકારના કૃષ્ણલેશ્યાવાળા એકેન્દ્રિય જીવને સૂફમ, બાદર, પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક રૂપથી ચાર ભેદે જે પ્રમાણે કહ્યા છે, એજ પ્રમાણે અહિયાં પણ સમજવા.