SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ १. श.१ २०६ अ०सूक्ष्मपूश्चिकायिकोत्पत्तिः ४०१ 'जे भविए एगपयरंमि अणुसेढी उपवज्जित्तए' यो भव्य एकमतरे अणुश्रेणिमाश्रित त्य समुत्पत्तुम्, 'से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उपवज्जेज्जा' स खलु जीव विसामा मयिकेन विग्रहेण समुत्पद्येत, 'जे भविए विसेढी उववज्जित्तए से णं चउसमइएण विग्गहेणं उबज्जेज्जा' यो भव्यो विश्रेणि-विश्रेणिमाश्रित्य विश्रेण्यामित्यर्थः; उत्पत्तुम्, स खल्ल चतुःसामयिकेन विग्रहेण गत्या समुत्पद्यत इति । 'से तेणटेणं जाव उववज्जेज्जा' तत्तेनार्थेन गौतम ! एव मुच्यते एकसामयिकेन वा, द्विसामयिकेन वा, त्रिसामयिकेन वा, चतुःसामयिकेन विग्रहेणोत्पद्यत इति । 'एवं अपज्जत्त सुहुमपुढवी कोइओ लोगस पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' एवं पूर्वोक्त सेढीए उपवज्जमाणे जे भधिए एगपचरंसि अणुसे हिँ उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विरगहेणं उबवज्जेज्जा' जो जीव विधातो वका श्रेणि से गमन करता हुआ एक प्रतर में समणि से उत्पन्न होता है तो वह तीन समयवाले विग्रह से वहां उत्पन्न होता है। और 'जे भविए विसे ही उववन्जित्तए से णं च उसमइएणं बिगहेणं उववज्जेज्जा' जो विश्रेणि में उत्पन्न होने के योग्य है वह वहां चार समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है। 'से तेजटेणं जाव उवचज्जेज्जा' इस कारण है गौतम ! मैने ऐसा कहा है कि वह वहां एकसमयवाले विग्रह से भी उत्पन्न होता है दो समयवाले विग्रह से भी उत्पन्न होता है. तीन समयवाले विग्रह ले भी उत्पन्न होता है और चार समयवाले विग्रह से भी उत्पन्न होता है । 'एवं अपज्जत्त सुहम पुढवीकाइओ लोगस्स पुरथिलिल्ले चरिमंते समोहए' इसी पूर्वोक्त क्रम के अनुसार कोई अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक जीव लोक के पूर्व चरमान्त में वकाए सेढीए उववज्जमाणे जे भविए एगपयरंभि अणुसेढि उववज्जित्तए से ण तिसमइएण विगहेण उववज्जेज्जा' २ ० द्विधात! 4t श्रेणीथी गमन કરતે થકે એક સમયમાં સમ શ્રેણીથી ઉત્પન્ન થાય છે. તે તે ત્રણ સમય पासवातिया त्या त्यात थाय छे मन 'जे भविए विसेदि उववज्जित्तए से ण च उसमइएण विग्गहेण उववज्जेज्जा' र विश्रेणीमा पन्न यवान योग्य छ, ते त्यांच्या२ समयपाणी विग्रहगतिथी 64न्न थाय छे. 'से तेणटणी जाव उववज्जेज्जा' २था ७ गोतमा में से सजे-तयां એક સમયવાળી વિગ્રહગતિથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે બે સમયવાળી વિહ ગતિથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે. ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહગતિથી પણ ઉત્પન થાય છે અને ચાર સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે. 'एव अपज्जत्त सुहमपुढवीकाइओ लॉगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए। भ० ५१
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy