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________________ भगवतीमधे 'मए सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ' मया-महावीरेण सप्तश्रेणयः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहां तद्यथा-'उज्जुयायया जाव अद्धचक्कवाला' ऋग्वायता यावद् अर्द्धचक्रवाला, अत्रयावत्पदेन एकतो वक्रा, द्विधातो वक्रा, एकतः खा, द्विधातः खा, चकवाला इत्यन्तश्रेणीनां संग्रहो भवति, तत्र-'एक ओ बकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गणं उबवज्जेज्जा' एकतो वक्रया द्वितीय श्रेण्या उत्पधमानो द्विसामयिकेन विग्रहेणोत्पधेत इति । ‘से तेणटेणं.' तत्तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते, द्विसामयिकेन वा, निसामयिकेन वा, विग्रहेण समुत्पद्यतेति ! ‘एवं पज्जत्तएम सत्त सेढीओ पण्णत्तामओ 'हे गौतम ! मैंने सात श्रेणियां कही है 'तं जहाँ' जैले-'अन्जु प्रायथा जाव अद्ध चकवाला' ऋज्वायता यावत् अर्धवाला यहां थावत्पद से-एकतो वका, द्विधातो वक्रा, एकतः खा, द्विधात: खा, और चकवाला' इन अवशिष्ट श्रेणियों का ग्रहण हुआ है। इन में से जो जीव 'एकमओ वंशाए सेढीए उयबज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उबवज्जेज्जा' उत्पत्तिस्थान में एकतो वक्रा श्रेणि से उत्पन होता है वह वहां दो समयवाले विग्रह से उत्पन्न होता है। यहां समणि नहीं है। इसलिए: प्रथमश्रेणि से गमल का अभाव रहता है। 'दुहओ चकाएं खेडीए उववज्जमाणे तिसमहरण विगहेणं उवव जेज्जा 'जो जीव उत्पत्तिस्थान में द्विधातो वका श्रेणि से जाकर उत्पन्न होता है वह यहां तीन खमयवाले विग्रह ले उत्पन्न होता है ? 'से तेण. टेणे. इस कारण हे गौतम ! मैंने पूर्वोक्तरूप ले ऐसा कहा है कि वह वहां दो समयकाले विग्रह से अथवा तीन समयकाले विग्रह से उत्पन्न गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पण्णत्ताओं' गौतम ! में सात श्रेणीयो डस छ. त जहा' ते मा प्रभाव छ – 'उज्जुयायया जाव अड्ढचक्कवाला' ત્રાજવાયતા યાવત્ અર્ધચક્રવાલા અહિયાં યાસ્પદથી એકતેવકા, દ્વિધાતાવકા, એક્તા ! ખા, દ્વિધાતઃ ! ખા અને ચકવાલા આ બાકીની શ્રેચ ગ્રહણ १२।७, छे. मामाथी ? ७१ 'एक ओ वंकाए सेढोए उवजमाणे दुसमइएणं विगहेणं उबवज्जेज्जा' पत्तिस्थानमा ताप श्रेणीथी 4-1 थाय छे. તે ત્યાં બે સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે. અહિયાં સમશ્રણ हाती नथी. मेथी पहेली श्रेणीथी गमन। ममा २९ छे. 'दुहओ वंकाएं सेढीए उबवज्जमाणे तिसमइएण विगहेणं उववज्जेज्जा'२ पत्तिस्थानमा દ્વિધાતેવા શ્રેણથી જઈને ઉત્પન્ન થાય છે, તે ત્યાં ત્રણ સમયવાળી વિગ્રહ शतिथी सत्पन्न थाय छे. 'से तेणट्रेणं० ते १२५थी गौतम ! में पता કહ્યા પ્રમાણે એવું કહે છે કે–તે ત્યાં બે સમયવાળી વિગ્રહ ગતિથી
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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