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________________ - भगवतीले हननयोग्यं यस्य कर्मण स्तन् । यदुदयात् जीवस्य श्रोत्रेन्द्रियं न लभ्यते तत्कर्म श्रोत्रे. न्द्रिय वध्यं कथ्यते-एवं सर्वत्र वोध्यम्, एतन्मतिज्ञानावरणविशेष इत्यर्थः, एवम्'चक्खि दियवज्झ' चक्षुरिन्द्रियवध्यम्, चक्षुरिन्द्रिय हननीयं तत्-दर्शनावरणा विशेषः १० । 'घाणिदियवज्झ" घ्राणेन्द्रिय वध्यम्, घाणेन्द्रिय हननीयम् ११ ।' 'जिभिदियवज्झ' जिह्वेन्द्रिय वध्यम् जिवेन्द्रिय हननीयं १२ । स्पर्शनेन्द्रिय वध्यन्तु तेषामपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिकानां नास्ति, यतः स्पर्शनेन्द्रियवध्यत्व स्वीकारे-एकेन्द्रियवहानिपसङ्गस्यादिति। 'इन्थिवेयवझ- स्त्रीवेदवध्यम् , यदुदयात् स्त्रीवेदो न लभ्यते तत् स्त्री वेदहननीयं कर्म १३ । 'पुरिसवेदव" पुरुपवेदवध्यम् , यदुदयात् पुरुषवेदो न लभ्यते, तत्कर्मपुरुषवेदहननीयम् १४.। नपुंसकूवध्यंतु एकेन्द्रियाणां नास्ति-नपुंसकवेदवृत्तित्वादिति। एवमेताश्चतुदेशकमप्रकृतयो भवन्ति । चाहिये यह श्रोत्रेन्द्रिय कर्म मतिज्ञानावरण विशेष रूप. होता है। 'चक्खिदियवज्झं तथा चक्षु इन्द्रिय वध्यकर्मका वे वेदन करते हैं। यह चक्षुरिन्द्रिय वध्घका दर्शनावरणीयकर्म विशेष रूप होता है। 'घाणि दियवज्झ" तथा घ्राणेन्द्रिय अध्यकर्म का वे वेदन करते हैं। 'जिभिदियवज्झ" जिवेन्द्रिय वध्यकम का वेदन करते हैं। स्पर्शनेन्द्रिय अध्यकर्म का वेदन उन अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिकों के नहीं है, क्यों कि.इनके. यदि स्पर्शनेन्द्रिय अध्यकर्म का वेदन स्वीकार किया जाय तो इनमें एकेन्द्रियता की हानि का प्रसंग प्राप्त होगा। 'इस्थिवेदवज्झ' इसी प्रकार से ये अपर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकाधिक जीव स्त्रीवेद वष्यकर्म का भी वेदन करते हैं। जिस के उद्य से स्त्री वेद प्राप्त न हो वह स्त्री वेद वध्यकर्म है। 'पुरिलवेदज्झ' पुरुष वेद वध्य कर्म का वेदन करते हैजिस के उदय से पुरुष वेद प्राप्त न हो सके वह पुरुष वेद वध्यकर्म है, કર્મનું દાન કરે છે. આ ચક્ષુ ઈદ્રિયાવરણ કર્મ દર્શનાવરણ વિશેષ રૂપ डाय छे. 'धाणिदियवज्झ' तथा प्रायद्रियापथ्य मनु वेहन ४३ छ. जिभिदियवज्झ' लवद्रियqध्य मनु वेहन ४२ छ. ते मर्याप्त सूक्ष्म પૃથ્વીકાયિકાને સ્પર્શેન્દ્રિયવધ્ય કર્મનું વેદન હોતું નથી. કેમ કે તેઓને જે સ્પર્શનેન્દ્રિયવધ્ય કર્મનુ વેદન સ્વીકારવામાં આવે તો તેમાં એકન્દ્રિય पशानी हानीना अस उपस्थित थ 'इथिवेयवज्झ' मा०८ प्रमाणे मा અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક જીવો સ્ત્રીવેદવધ્ય કર્મનું પણ વેદન કરે છે. જેના यथी सीव प्राप्त न थाय त श्रीवहनध्य में उवाय छे. 'पुरिसवेदवज्झ" પુરૂષ વેદવષ્ય કમનું દાન કરે છે. જેના ઉદયથી પુરૂષદ પ્રાપ્ત ન
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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