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भगवतीय दौ घा, षड् वा, दश वा, चतुर्दश वा, संख्याता वा, असंख्याता का, क्षुल्लककल्योजनारकाणाम् एको वा, पञ्च वा नव वा, त्रयोदश वा, संख्याता वा, अस. ख्याता वा, इत्येवं क्रमेण वक्तव्यम् । 'नवर परिमाणं जाणियध्य' इत्यस्यायमेव भावो मूलसूत्रे इति । 'सेस तं चेव' शेपं परिमाणातिरिक्तं सर्व कृतयुग्मनारक वदेव ज्ञातव्यम् ।
रत्नप्रभा पृथिवी सम्बन्धि ज्योज-द्वापरयुग्म कल्योज नारकवदेव शर्करा प्रभात आरभ्याऽधः सप्तमी पृथिवी सम्बन्धि योज-द्वापरयुग्म-कल्योजनारकाणा मपि एवमेव परिमाणे वैलक्षण्यम्, तदन्यत्सर्व रत्ननमा मथमनारक पृथिवी संख्यात अथवा असंख्यात कहा गया है । क्षुल्लक कल्पोज नारकों का परिमाण एक, पांच, नौ, तेरह संख्यात अथवा असंख्यात कहा गया है। सो इस क्रम से इनका परिणाम कहना चाहिए, इस प्रकार से 'नवरं परिमाणं जाणियध्वं' इस सूत्र का यही भाव मूलसूत्र में प्रदशित किया है । 'सेसचेव' परिमाण से अतिरिक्त और सब कधन कृतयुग्म नारक के जैसा ही जानना चाहिये । रत्नप्रभा पृथिवीं सम्बन्धी योज, द्वापर युग्म और कल्योज राशिप्रमित नारकों के जैसा ही शर्कराप्रभा से लेकर अधासप्तमी पृथिवी सम्बन्धी नारकों के भी परिमाण में इसी प्रकार से वैलक्षण्य जानना चाहिये । इसके सिवाय और सब कथन रत्नप्रभा प्रथम नारक पृथिवी के जैसा ही जानना चाहिये, 'सेवं भंते ! सेव भंते ! त्ति' हे भदन्त ! जैसा यह विषय નારકેનું પરિમાણ છે, છ, દસ, ચૌદ સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત કહેલ છે. ક્ષુલ્લક કલ્યાજ નારકેનું પરિમાણ એક, પાંચ નવ, તેર સ ખ્યાત અથવા અસંખ્યાત કહેલ છે. તે આ કમથી આમનું. પરિમાણુ કહેવું જોઈએ. 'नवरं परिमाणं जाणियव्व" मा सूत्री मामा भूतसूत्रमा मतावस छे. ... 'सेस त चेव' परिभाष शिवायनु भी सघणु थन तयुभ ना२४॥ કથન પ્રમાણે જ સમજવું. રત્નપ્રભા પૃથ્વી સંબંધી જ, દ્વારપયુગ્મ, અને કાજ રાશિપ્રમિત નારકેના પરિમાણમાં પણ આજ પ્રમાણેનું વિલક્ષણ્ય સમજવું. આ શિવાય બાકીનું સઘળું કથન રત્નપ્રભા પૃથ્વીની પહેલી નારક પૃથ્વી સંબંધી જ વિગેરેના કથન પ્રમાણે કહેલ છે.
_ 'सेव भंते ! सेव भते ! त्ति' है मगवन् मा विषय समयमा मा५ દેવાનુપ્રિયે જે પ્રમાણે કહ્યું છે, તે સઘળું કથન એજ પ્રમાણે છે, હું ભગવાન