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________________ प्रमेयचन्द्रिका का श०३२ उ.१ सू०१ नारकादि जीवानामुद्वर्तनानि० २३३ तेनैव रूपेण शर्करामभा द्वितीय नारकपृथिवी सम्बन्धि क्षुल्लक-कृतयुग्म-राशिप्रमाणकनारकादारभ्यापासप्तमी नारक पृथिवी सम्बन्धि क्षुल्लक-कृतयुग्मराशिप्रमाणक नारकजीवपर्यन्मजीवानामपि-उतना वक्तव्या प्रकारश्च पूर्वप्रद. शित एव ग्राह्यः । एवं खुड्डागतेओग खुड्डागदावरजुम्म खुड्डाग कलिओगा' एवं क्षुल्लकम्योज क्षुल्लक द्वापरयुग्म, क्षुल्लक कल्योजराशि प्रमाणा अपि जीवा ज्ञातव्याः। 'नवरं परिमाणं जाणियब्छ' नवर केवल परिमाणं भिन्न भिन्न रूपेण क्षुल्लक कृतयुग्मादिनारकाणां ज्ञातव्यम् । तथाहि-क्षुल्लक-कृतयुग्मनारकाणां परिमाणम्-चत्वारो वा, अष्टौ वा, द्वादशवा-पोडश वा, संख्याता वा, अस ख्याता वेति कथितम्, तथा क्षुल्लकयोजनारकाणां यो वा, सन वा, एकादश वा, (श्चदश चा, संख्याता था, असंख्याता वा, इत्येवं क्रमेण वक्तव्यम् । एवं-क्षुल्लक-द्वापरयुग्मनारकाणाम्, कृतयुग्म राशिप्रमाण नारक जीवों तक की भी कहनी चाहिये । इस सम्बन्ध में प्रकार पूर्व पद में दिखा ही दिया गया है ! 'एवं खड्डाग तेओग खुड्डाग दावर जुम्म खुड्डाग कलिओगा' इसी प्रकार से क्षुल्लक योज, क्षुल्लक द्वापरयुग्म और क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित जीवों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये, 'नवर परिमाण जाणियन्वं' परन्तु क्षुल्लक कृतयुग्लादि नारकों का परिमाण भिन्न-२ रूप से जानना चाहिये। जैसे-क्षुल्लक कृतयुग्म नारकों का परिमाण चार, आठ, बारह सोलह, संख्यान या असंख्यात कहा गया है । क्षुल्लक व्योज नारकों का परिमाण तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह संख्यात या असंख्यात कहा गया है । क्षुल्लक द्वापरयुग्म नारकों का परिमाण दो, छह, दश, चौदह, સુકલક કૃતયુગ્મ રાશિ પ્રમાણે નારક જીવ સુધીની કહેવી જોઈએ આ સંબં ધમાં પહેલા બતાવેલા પ્રકાર પ્રમાણેને પ્રકાર સમજે. - एवखुड्डाग तेओग खुड्डागदावरजुम्मखुड्डाग कलिओगा' मा પ્રમાણે ક્ષુલ્લક જ, ક્ષુલ્લક દ્વાપરયુગ્મ અને મુલક કજરાશિપ્રમિત लवान सभा १ सभापु . 'नवर परिमाण जाणियव्व' परंतु क्षुल्स કૃતયુગ્મ વિગેરે નારકોનુ પરિણામ જૂદા જુદા પ્રકારનું સમજવું જેમ કેમુલક કૃતયુગ્મ નારકનું પરિમાણ ચાર, આઠ, બાર, સેળ, સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત કહેલ છે. મુલ્લક જ નારકેનું પરિમાણ ત્રણ, સાતે, અગિયાર પંદર, સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત કહેલ છે. ક્ષુલ્લક દ્વાપરયુગ્મ भ० ३०
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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