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________________ - - - - प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३२ उ.१ सू०१ नारकादि जीवानामुहर्तनानि० २३१ केवाया उबटुंति' ते खलु नारका भदन्त ! एकसमयेन एकस्मिन् समये इत्यर्थ। कियत्संख्यका उद्वर्तन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह 'गोयमा, इत्यादि । गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि वा, अट्ट वा, बारस बा, सोलस वा, संखेज्जावा असंखेज्जावा, उबईति' क्षुल्लक-कृतयुग्म-नारका श्वरवारो दा, अष्टौवा, द्वादश बा, पोडश वा, संख्याता वा असंख्याता वा, एकसमये उद्वर्तन्ते' इति । 'ते णं मंते ! जीवा कई उबटुंति' ते खलु भदन्त ! क्षुल्लक कृतयुग्म-नारका जीवाः कथं केन प्रका. रेण उद्वर्तन्ते इति प्रश्नः । भावानाह-गोयमा' हे गौवन ! 'से जहानामए पत्रए एवं तहेव' स यथानामका प्ला , एवं तथैव-पूर्वोक्तवदेव ‘एवं सो चेव गम यो जाव-आयप्पओगेग उन्नति' एवं स एव भमको यावद् आत्मपयोगेण उद्वर्तन्ते नो परमयोगेगोत्पद्यन्ते । अयं भावः क्षुल्लक-कृतयुगम-लारकाः कथमुत्तन्ते इति समएणं केवड्या उबवज्जति' हे अदन्त ! वे जीव एक लमय में कितने उत्पन्न होते हैं अर्थात् वे जीव नरक ले एक समय में कितने निकलते है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! चत्तारि बा अहवा, बारस वा, सोलस वा स खेज्जा वा असंखेज्जा वा उमट्टति' हे गौतम! चार अथवा आठ अथवा बारह अथवा सोलह अथवा संख्यात या असंख्यात नारक जीव एक समय में वहां से निकलते हैं। 'तेणं अंते ! जीवा कह उन्वति' हे अदन्त ! क्षुल्लक कृतयुग्म राशिप्रमित नारक जीव किस प्रकार से उतना करते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयना ! ले जहानामए परए एवं तहेच' हे गौतम ! जैसे कोई कूदनेवाला मनुष्य जैसाकि पच्चील वें शतक के आठवे उद्देशक में कहा गया है उसी के अनुसार यहां गमक कहना चाहिये, अर्थात् क्षुल्लक कृतयुग्म नारक किस प्रकार से उद्वर्तना करते हैं ? तो केवइया उववज्जति' हे मन ७३॥ ॐ समयमा पनि थाय छ ? અર્થાત્ એક સમયમાં નરકવાસમાંથી કેટલા નીકળે છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा ! चतारि वा, अट्ट वा, बारस वा, सोलसवा, संखेज्जा वा, असखेज्जा वा उबटुंति' गौतम। या२ अथवा 18 अथवा मा२ अथवा सेण अथवा સંખ્યાત અથવા અસંખ્યાત નારક જીવ એક સમયમાં ત્યાંથી નીકળે છે. 'तेणं भते जीवा कह उच्चति' है मगन्ते क्षुद तयुम्भ राशि પ્રમિત નારક જી કઈ રીતે ઉદ્વર્તન કરે છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा 1 से जहा नामए पवए एवं तहेव' 3 गौतम ! म पावाणी પુરૂષ જેમ કે પચ્ચીસમા શતકના આઠમા ઉર્દેશામાં કહેવામાં આવેલ છેએજ પ્રમાણેના ગમકે અહિયાં કહેવા જોઈએ અર્થાત્ ક્ષુલ્લક કુતયુગ્મ
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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