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प्रमैचन्द्रिका टीका श०३१ उ.६-२८ सू०१ लैश्यायुक्त नै उपपातादिकम् २१३
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उत्पद्यन्ते किं नैरयिकेभ्यस्तिर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्येभ्यो देवेभ्यो वा आगत्योत्पधन्ते इति प्रश्नः, भगवानाह - ' एवं जहा ' इत्यादि । एवं जहेव ओहिओ कण्हलेस्स उस तव निरसेस' चउसु वि जुम्मेसु भाणियन्दो, एवं यथैव औधिकः कृष्ण aarttarः तथैव निरवशेष चतुर्ष्वपि युग्मेषु कृतयुग्म त्रयोज द्वापर कल्योज - युग्मेषु भणितव्यः । कियत्पर्यन्त मौधिक गमवक्तव्यता ? तत्राह - ' जाव' इत्यादि । 'जाब अहे सत्तम पुढची कण्हलेस खुड्डागकलिओगनेरइयाणं भन्ते ! कभ | उतवज्जेति यावदधःसप्तमपृथिवी कृष्णलेश्य क्षुल्लक कल्योजनैरयिकाः खलु शतक ३१ उद्देशक ६ - २८ तक
'कण्हलेस्स भवसिद्धिय खुड्डाकडजुम्म नेरयाणं भंते!' इत्यादि टीकार्थ :- हे भदन्त | कृष्णलेश्यावाले भवसिद्धिक क्षुद्र कृतयुग्म प्रमाण प्रमित नैरथिक 'कओ उववज्जंति' किस स्थान विशेष से आक रके नरकावास में उत्पन्न होते हैं ? क्या नैरयिकों में से आकरके वे वहाँ उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यग्योनिकों में से आकर के वे वहां उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से आकर वहां उत्पन्न होते हैं ? या देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं' एवं ' जहेव ओहिओ कण्हलेस्स उद्देसओ तहेव निरवसेस चउसु वि जुम्मेसु भाणियन्बो' हे गौतम ! औधिक कृष्णलेश्या के उद्देशक में जिस प्रकार से कहा गया है उसी प्रकार से चारों युग्मों में भी कहना चाहिये, वे चार युग्म - कृतयुग्म, ज्योज, द्वापर और कल्योज-ये हैं । यह औधिक गमवक्ता यावत्, अधः सप्तमी नारक पृथिवी के कृष्ण लेश्य છઠ્ઠા ઉદ્દેશાના પ્રારભ—
'कण्हलेस भवसिद्धिय खुड्डाग कड़जुम्म नेरइयाणं भंते !' इत्यादि
ટીકાૐ ભગવત્ કૃષ્ણુલેસ્યાવાળા ભવસિદ્ધિક ક્ષુદ્રકૃતયુગ્મ પ્રમિત નૈરયિક 'कओ उववज्जति' या स्थान विशेषथी आवीने नरावासमा उत्पन्न थया छे ? શુ‘તે નૈરિયકામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા તિય ચામાથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્યેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા લેામાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ स्वाभीने हे छे }-'एवं जहेब ओहिओ कण्दलेस्स उद्देसओ तहेव निरवसेसं
उ वि जुम्मे भाणिव्वो' हे गौतम! गौधिः पृ॒ष्णुलेश्याना उद्देशामां ने પ્રમાણે કહેવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણે ચારે યુગ્મામાં કહેવું. જોઇએ. તે ચાર યુગ્મ તે નૃતયુગ્મ ચૈાજ દ્વાપર અને કયેાજ એ પ્રમાણે છે. ઔધિક ગમ સ`ખ"ધી કથન ચાવત્ અધઃસની નારક પૃથ્વીના કૃષ્ડવેશ્યાવાળા ક્ષુલ્લક