________________
१२६
.
.
भगवतीसूत्रे अभवसिद्धिका इति भावः। 'अन्नाणी जाव विमङ्गनाणी जहा काहपक्खिया' अज्ञानिनो यावद्विभङ्गजानिनो यथा कृष्णपाक्षिकाः, अत्र यावत्पदेन मत्वज्ञानि श्रुताज्ञानिनः संग्रहो भवति तथाचाज्ञानित आरभ्य विमङ्गज्ञानिपर्यन्ताः सर्वेऽपि कृष्णपाक्षिकवदेव अक्रियावादित आरभ्य समवसरणत्रयेषु भवसिद्धिका अपि अभवसिद्धिका अपोति । 'सन्नासु चउसु वि जहा सलेरसा' संज्ञासु आहारादि परिग्रहान्तासु चतसृष्वपि यथा सलेश्याः सलेश्यवदेव चतुर्वपि आहारादि संज्ञावत्सु क्रियावादिनः भवसिद्धिकाः न तु अभवसिद्धिका अक्रियावादिन स्त्रिषु समवसरणेषु भवसिद्धिका अपि अभवसिद्धिका अपीति । 'नो सन्नोवउत्ता जहा सम्मदिट्ठी' नो संज्ञोपयुक्ता जीवा यथा सम्यग्दृष्टयः सम्यग्दृष्टिचदेव क्रियावादिनो इनका ग्रहण हुआ है। तथाच-ज्ञानी से लेकर केवलज्ञानी तक सब जीव भवसिद्धिक ही होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं । 'अन्नाणी जाब विभंगनाणी जहा काहपक्खिया' यावत्पद ग्रहीत मत्यज्ञानी, अताज्ञानी तथा अज्ञानी एवं विभंगज्ञानी ये सब कृष्णपाक्षिक के जैसे अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी एवं वैनयिकवादी की हालत में भवसि. द्धिक भी होते हैं और अभवलिद्धिक भी होते हैं। 'सन्नासु च उत्सु वि जहा सलेस्ला' आहार संज्ञा से लेकर परिग्रह संज्ञा तक की चार संज्ञाओं में भी सलेश्य जीवों के जैसे जीव क्रियावादी अवस्था में भवसिद्धिक ही होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते। तथा अक्रियावादी एवं अज्ञानवादी तथा वैनयिकवादी अवस्था में ये सब भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्धिक भी होते है । 'नो सन्नोव उत्ता जहा વાળા જ ગ્રહણ કરાયા છે. તથા જ્ઞાનથી લઈને કેવળજ્ઞાની સુધીના સઘળા wa सिद्ध डाय छ, मलसिद्धि ता नथी. 'अन्नाणी जाव विभंगनाणी जाव कण्डपक्खिया' मडियां सूत्रमा मावस अज्ञानी यात्५४थी મતિઅજ્ઞાનવાળા શ્રુતજ્ઞાનવાળા તથા વિર્ભાગજ્ઞાની એ બધા કૃષ્ણપાક્ષિક જીવન કથન પ્રમાણે અકિયાવાદી, અજ્ઞાનવાદી અને વૈનાયિકવાદીપણામાં ભવસિદ્ધિક હોય છે, અભયસિદ્ધિક હોતા નથી.
'सन्नासु चउसु वि जहा सलेस्सा' भाडा२ संज्ञाथी सन परिवह संज्ञा સુધીની ચારે સત્તામાં વેશ્યાવાળા ના કથન પ્રમાણે જીવ ક્રિયાવાદી પણામાં ભવસિદ્ધિક જ હોય છે, અભાવસિદ્ધિક હોતા નથી. તથા અક્રિયાવાદી અને અજ્ઞાનવાદી તથા વનયિકવાદી અવસ્થામાં આ બધા ભવસિદ્ધિક પણ साय छे. मन मसिद्धि प डाय छे. 'नो सन्नोवउत्ता जहा सम्मदिट्ठी'