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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३० २.१ सू०४ जीवानां भवसिद्धिकत्वादिनि० १५५' कथिता स्तथैव मासिद्धिका एक न तु अभवसिद्धिका भवन्तीति । 'मिच्छादिट्टी जहा कण्हपक्खिया' मिथ्यादृष्टयो यथा कृष्णपाक्षिकाः कृष्ण पाक्षिकवदेव मिथ्या दृष्टयोऽ क्रियावादीत्यादि सपन मरणत्रये विकल्पेन भवसिद्धिका अभवसिद्धिका अपि भवन्तीति ज्ञातव्यम् । 'सम्मामिच्छादिट्ठी दो मु वि समोसरणेसु जहा अलेस्सा' सम्यग्मिथ्यादृष्टयो मिश्रदृष्टयः द्वयोरपि तृतीयचतुर्थयोरज्ञानिकवादि चैनयिकवादि समवसरणयोरलेश्यवदेव भवसिद्धिका भवन्तीति ज्ञातव्यम् । 'गाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' ज्ञानिनो यावत्केवलज्ञानिनश्च भवसिद्धिकाः, अत्र यास्पदेन मलिश्रुतावधिमनःपर्यवज्ञानिनां संग्रहो भवति तथा च ज्ञानित गारभ्य केवलज्ञानिपर्यन्ताः सर्वेऽपि भवसिद्धिका एव भवन्ति न तु जिस प्रकार से अश्य जीव कहे गये हैं उसी प्रकार से सम्पादृष्टि जीव भी भक्तिद्धिक ही होते हैं अभवसिद्धिक नहीं होते हैं । 'मिच्छा. दिही जहा माहपक्विया' मिथ्यादृष्टि जीव भी कृष्णपाक्षिकों के जैसे अक्रियावादी, अज्ञानिकबादी और वैनायकवादी अवस्था में भवसिद्धिक भी होते हैं और अभवसिद्रिक मो होते हैं। 'सम्मामिच्छा दिट्ठी दोस्तु वि संमोलरणेलु जहा अलेस्ता' अलेश्य जीवों के जैसे मिश्रदृष्टि जीव दो समवसरण अवस्था में-अज्ञानिकवादी और वैनयिकबादी स्थिति में-भज्ञलिद्धिक होते हैं ऐसा जानना चाहिये 'णाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' ज्ञानी यावत् केवल ज्ञानी जीव भवसिद्धिक ही होते हैं, अभवसिद्धिक नहीं होते हैं। यहां यावत् पद से मतिज्ञानी श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी और धनापर्यवज्ञानी
वो पय सवसिद्धि ४ाय छे. मससिद्धि त नथी. 'मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपश्जिया' मिथ्याटवाणा 4 १५५क्षिा ना ४थन प्रभारी અક્રિયાવાદી, અજ્ઞાનવાદી, અને વયિકવાદી અવસ્થામાં ભવસિદ્ધિક પણ હોય 2. सन मनसिद्धि पाय छे. 'सम्मामिच्छादिट्ठी दोसु वि समोसरणेसु जहा अलेस्सा' वेश्या विनाना ४थन प्रमाणे भिष्टिपणा બે સમવસરણની અવસ્થામાં એટલે કે અજ્ઞાનવાદી અને વૈયિકવાદીપણાની અવસ્થામા ભવસિદ્ધિક હોય છે તેમ સમજવું । 'णाणी जाव केवलनाणी भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया' ज्ञानी यावत કેવળજ્ઞાની જીવે ભવસિદ્ધિક જ હોય છે. અભવસિદ્ધિક હોતા નથી અહિયાં થાવત્પદથી મતિજ્ઞાનવાળા શ્રવણ નવાળા અવધિજ્ઞાનવાળા અને મન:પર્યાવજ્ઞાન