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'नो नेरइयाउ पकरेति' नो नैरयिकायुष्क' मकुर्वन्ति 'णो विरिक्ख० ' तिर्यग्योनिका प्रकुर्वन्ति णो मणुस्सायं ० ' नो मनुष्यायुष्कं मकुर्वन्ति 'णो देवाउयं पकरेति' नो देवायुवक प्रकुर्वन्ति 'अकिरियाबाई अन्नाणियवाई desert चउवि पि करेंति' अक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिक वादिनं पचेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः कृष्णश्याचन्त चतुर्विधं चतुःप्रकारमपि नार कति मनुष्यदेवायुकं कुर्वन्तीति भावः । 'जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा वि यथा कृष्णलेश्याः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका स्वथैव नीललेश्या अवि कापतिक ठेवा अपि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका वक्तव्याः तथा च क्रियावादि पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिका न नारायुकं न तिर्यग्योनिकायुष्क' न मनुष्यायुष्कं न हैं - 'गोमा ! नो नेरझ्याउयं पकरेति, नो तिरिक्खाउयं पश्रेति 'हे गौतम ! कृष्णवेश्यावाले क्रियावादी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक न नैरथिक आयुका बन्ध करते हैं, न तियेायु का बन्ध करते हैं, 'नो माज्य पकरेति' न मनुष्यायु का बन्ध करते हैं, 'णो देवाउय पकरेति' और न देवायु का बंध करते हैं। 'अकिरियाचाई, अन्नाणियवाई, वेणइयवाई, पिपति' अक्रियावादी, मज्ञानिकवादी और वैनयिकवादी कृष्णश्यावाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च चारों प्रकार की आयु का बंध करते हैं । 'जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा वि काउलेस्ला वि' जिस प्रकार से कृष्णलेावाले पचेन्द्रियतिर्यक् कहे गये हैं उसी प्रकार से नीलखेड्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यश्च एवं कापोतिकलेश्यावाले भी कहने चाहिये अर्थात्ं क्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च न नारकायुष्क का बन्ध करते हैं, न निर्य गायक का बन्ध करते हैं, न मनुष्यायुष्क का बन्ध करते हैं और न 'स्वामीने उडेछे - 'गोयमा ! नो नेरइयाउय पकरेति नो तिरिक्खजोणिया य-पकरेंति' हे गौतम! सॄष्णुसेश्यावाणा द्वियात्राही यथेन्द्रिय तिर्यथ वा નારકાના આયુના બંધ કરતા નથી. તથા તિર્યંચ આયુને અંધ કરતા નથી 'नो 'मनुस्सायं परे 'ति' भनुष्य मायुना पशु अंध उरता नथी. 'जो देवाय' पकरे'ति' तथा हेव आायुना पशु तेथे गंध उरता नथी. 'अकिरियावाई, अन्नाणिवाई वेणइयवाई, चउन्विहं पिपकरेति' अडियावाही अज्ञानवाही अने वैनयि વાંદી કૃષ્ણલેસ્યાવાળા પંચેન્દ્રિય તિય ચ ચારે પ્રકારના આયુને બંધ કરે છે. 'जा कहलेखा एवं नीललेस्सा वि काउलेस्सा वि' ने प्रभाषे दृष्णुश्यावाजा પચેન્દ્રિય તિય ઇંચોનું કથન કર્યુ છે, એજ પ્રમાણે નીલેશ્યાવાળા પચેન્દ્રિય તિય ચ અને કાપેાતિકલેશ્યાવાળા પચેન્દ્રિય તિય ચનું કથન પણ કરવું જોઇએ’ અર્થાત્ નારકાયુના બંધ કરતા નથી, તિર્યંચયુને પણ અધ કરતા નથી. મનુષ્ય આયુના પણ બંધ કરતા નથી. તથા દેવ આયુના પણ ખંધ કરતા નથી. કેમ કે–