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________________ भगवतीसूत्र अलेश्यजीवरदेव क.पायरहिता जीवाः न नारकायुष्क कुर्वन्ति न वा तिर्यग्योनिकायुष्क कुर्वन्ति न वा अनुष्यायुष्क कुर्वन्ति न वा देवायुप्ककुर्वन्ति इति भावः। 'सनोगी जाव कायजोगी जहा सलेस्सा' सयोगिनो यावर काययोगिनश्च यया सलेश्याः, यावत्पदेव पनोयोगिनां वाग्योगिनां च संग्रहो भवति तथा च सामान्यतो योगवन्तो मनोयोगिनो वचोयोगिनः काययोगिनश्च सलेश्यजीववत् नारकायुष्कमपि कुर्वन्ति तिर्यग्यो निकायुष्कमपि कुर्वन्ति मनुष्यायुष्मपि कुर्वन्ति देवायुष्कमपि कुर्वन्तीति भावः । 'अजोगी जहा अलेस्सा' अयोगिनः सामान्यतो योगरहिताः सिद्धाः केवलिन रते अलेक्यवदेव आयुषां वन्ध का न भवन्तीति । 'सागारोवउत्ता अनागारोवउत्ता य जहा सलेम्सा' साकारोपयोगयुक्ता अनाकारोजीव किसी भी भायुका पन्ध नहीं करते हैं। सजोगी जाब कायजोगी जहा सलेला' लेश्य जीवों के जैसे सयोगी थावत् काययोगी जीव चारों आयुओं का बन्ध करते हैं। यहां चावत्पद से मनोपयोगी और धाग्योगी इन दो का ग्रहण हुआ है। इस प्रकार सामान्य ले योगवाले जीव और मनोयोगवाले जीव बचन योगवाले जीव और काययोगवाले जीव ललेश्य जीवों के जैसे नारक आयुका भी चन्ध करते हैं, तिर्यगायुष्क का भी मनुष्यायुष्क का भी और देवा. युष्क का भी बन्द करते हैं। 'अजोगी जहा अलेसहा सामान्य से योग रहित सिद्ध जीव और केवली अलेश्य जीवों के जैसे किसी भी आयुका बंध नहीं करते हैं । 'सामारोवउत्ता अनागारोव उत्ता य जहा सलेस्ला' मलेश्य जीवों के जैसे साकारोपयोगयुक्त तथा अनाकारो भाया पाया पाया पड राय छ 'अकमाई जहा अलेस्सा' वेश्या विनाना वाना थन प्रभारी ४ाय विनाना 4 या मायुना ॥ ४२ता नथी. 'सजोगी. जाव कायजोगा जहा सलेस्सा' લેશ્યાવાળા જીના કથન પ્રમાણે સગી યાવત્ કાય ગવાળા જીવે ચારે પ્રકારના આ યુને બંધ કરે છે. અહિયાં ચાવત્પદથી મનેગવાળા અને વચનગવાળાઓ ગ્રહણ કરાયા છે. આ રીતે સામાન્યથી ગવાળા જ અને મને ગવાળા છ વચનોગવાળા જી અને કાયયેગવાળા છે લેશ્યાવાળા જીવોની જેમ નારક આયુષ્યને પણ બંધ કરે છે. તિર્યંચ આયુ વ્યનો પણ બંધ કરે છે. મનુષ્ય આયુષ્યનો પણ બંધ કરે છે, અને દેવ म युध्यने ५५४ मध ४२ छ 'अजोगी जहा अलेस्मा' सामान्यथा योगविनाना સિદ્ધ છે અને કેવલી અલેશ્ય ના કથન પ્રમાણે કઈ પન્ન આયુષ્યને म ४२ता नथी. 'सागारोपवत्ता अनागारोवउत्ता य जहा सलेस्सा' वेश्यावाणा
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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