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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ३० ४.१ सू०२ आयुर्वन्धनिरूपणम् टंं विज्ञेया इति मनुष्यतिरचोः कृष्णादि त्रितय लेश्याकाले आयुर्वन्धाभावादिति || 'अकिरियाबाई अन्नाणियवाई वेणइयवाई य, चत्तारि वि आउयाई पकरेंति' कृष्णलेश्या अक्रियावादिनः, अज्ञानिकवादिनः, चैनयिकवादिनश्थ जीवाः चत्वारि अपि आयुष्काणि नारकतिर्यग्मनुष्य देवसम्बन्धीनि प्रकुर्वन्ति चतुष्प्रकारकमपि आयुष्कर्म वध्नन्तीति भावः । ' एवं ' नीललेस्सा वि काउलेस्सा वि' एवं कृष्णलेश्यवदेव नीललेश्यावन्तः कापोतलेश्यावन्तश्च अक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिकवादिनथ जीवाः चतुष्प्रकारकमपि आयुष्ककर्म वध्नन्तीति भावः । क्रियावादिनो जीवास्तु केवलं मनुष्यायुष एवं बन्धं कुर्वन्तीति' 'तेउलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियावा किं नेरहयाउयं पकरें वि पुच्छा' तेजोलेश्याः खल भदन्त ! अपेक्षा से कहा गया हैं क्धों की मनुष्य और तिर्यञ्च कृष्णादि तीन लेश्या के सद्भावकाल आयुका कध नहीं करते हैं । 'अकिरियाबाई अन्नाणियचाई वेणहयवाईप चसारि वि आउयाई पकरेति अक्रियाबादी, अज्ञानवादी, चैनषिकवादी ये सब चारों भी आयुओं का बन्ध करते हैं । कृष्णलेषावाले अक्रियाबादी जीव 'अन्नाणियवाई' अज्ञानवादी जीव और 'वेणहवाई' बैनधिकवादी जीव चारों आयुओं का पन्ध करते हैं। 'एवं नीललेस्सा वि काउलेस्ला वि 'इसी प्रकार नीललेइयावाले और कापोतश्यावाले अक्रियावादी जीव, अज्ञानिकवादी जीव एवं वैनयिकवादी जीव चारों प्रकार की आयु का बन्ध करते हैं । और क्रियावादी जीव मात्र मनुष्यायु का ही बन्ध करते हैं 'तेउलेस्सा णं भंते! जीवा किरियाबाई किं नेरहयाउयं पकरेति पुच्छा' हे भदन्त । तेजोलेश्यावाले કથન આ દેવ નારકોની અપેક્ષાથી કહેલ છે. કેમ કે-મનુષ્ય અને તિય ચ કૃષ્ણુ विगेरे प्रभु बेश्याना सलावाणमां आयुनो अधरता नथी. 'अकिरिया - बाई अन्नाणियवाई वेणइयवाई य चत्तारि वि आउयाई पकरेंति' अडियावादी અજ્ઞાનવાદી, વૅનિયકવાદી એ ખધા ચારે પ્રકારના આયુષ્યના બંધ કરે છે, पॄष्णलुसेश्यावाणा अडियावाही व 'अन्नाणियवाई' अज्ञानवाही व अने 'वेणइयवाईय' वैनयिवाही लव यारे प्रहारना आयुनो बंध ४ छे, 'एव ं नीललेस्सा वि काउलेला वि' मेन अभाो नीससेश्यावाणा ने अश्या વાળા જીવા અક્રિયાવાદી જીવ, અજ્ઞાનવાદી જીવ અને નૈનિયકવાદી જીવના કથન પ્રમાણે ચારે પ્રકારના આયુષ્યને મંધ કરે છે. અને ક્રિયાવાદી જીવ ठेवण मनुष्यायुना ४ अंध अरे छे. 'वेउलेस्सा णं भंते ! जीवा किरियाबाई किं नेरइयाज्य' पकरेति' पुच्छा' हे भगवन् तेलेबेश्यावाजा वे मा
SR No.009327
Book TitleBhagwati Sutra Part 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages812
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size54 MB
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