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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ सू०१२ पुद्गलानां सकम्प-निष्कपत्वनि० ९०१ अंतर होइ' निरेजस्य-चलनक्रियारहितस्य परमाणोः कियत्कालमन्तरं भवतीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सहाणंतरं :पड्डच्च जिहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्नइमार्ग' स्वस्थानं प्रतीत्य नघन्येन एकं समयं यावत् उत्कर्षेण आवलिकाया असंख्येयं भागम् असंख्येयभाग. ‘पर्यन्तमन्तरं भवति, 'परहाणतरं पडुच्च जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं' परस्थानं प्रतीत्य जघन्येन एकं समयम् उत्कृष्टतस्तु असंख्येयं कालम् यदा "खल परमाणुः निश्चलः (स्थिरः) भूत्वा जघन्यतः एकसमयं यावत् परिभ्रम्य पुनः "निरेयस्स केवयं कालं अंतर होइ' श्रीगौतमस्वामीने इस सूत्रद्वारा प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! जो पुद्गल परमाणु निष्कंप होता है उसका अन्तर कितने काल का होता है ? अर्थात् जो परमाणु पहिले निष्कंप होकर सकम्प बन जाता है फिर वह अपनी निष्कम्प अवस्था में आने में कितना समय लेता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं} 'गोयमा ! सट्ठाणंतरं पडुच्च जहन्ने] एक्कं समयं उक्कोसेणं आवलियाए "असंखेज्जाभार्ग' हे गौतम ! स्वस्थान के अन्तर की अपेक्षा लेकर जघ न्य से एक समय का अन्तर होता है और उत्कृष्ट से आवलिका के 'असंख्यातवें भाग पर्यन्त अन्तर होता है। तथा-'परहाणंतरं पडुच्च जहन्नेणं एवं समयं उक्कोलेणं असंखेज्ज कालं' परस्थान को लेकर जघन्य से एक समय का और उत्कृष्ट से असंख्यात काल का अन्तर होता है। जब परमाणु स्थिर निश्चल होकर के जघन्य से एक समय तक । 'निरेयस वइय काल अंतर होई' वे श्रीगीतमस्वामी मा सूत्रपा • દ્વારા પ્રભુશ્રીને એવું પૂછે છે કે-હે ભગવદ્ જે પુદ્ગલ પરમાણુ નિષ્કપ હે છે, તેનું અતર કેટલા કાળ સુધીનું હોય છે? અથતુ જે પરમાણ પહેલાં નિકંપ થઈને સકંપ બની જાય છે, તે પછી પાછા પિતાની નિષ્કપ અવસ્થામાં આવવામાં કેટલો સમય લે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गौतमस्वामीन छ -'गोयमा ! सट्टाणंतर' पडुच्च जहन्नेण एक्कं समय, उकोसेण', मावलियाए असंखेज्जइभार्ग' 3 गौतम ! स्वस्थाननी अपेक्षाथी જિઘન્યથી એક સમયનું અંતર હોય છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી આવલિકાના અસં. 'भ्यातभा मा पन्तनु मत२ डाय छे, तथा 'परद्वाण तर पडुच्च जहन्नेण 'एक समय उक्कोसेण असंखेज्ज काल' ५२२थानना 'अपेक्षाथी .यथी । સમયનું અને ઉત્કૃષ્ટથી અસંખ્યાત કાળનું અસર હોય છે. જ્યારે પરમ ણ - સ્થિર નિશ્ચલ થઇને જઘન્યથી એક સમય સુધી ભ્રમણ કરીને સ્થિર થઈ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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