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भगवतीसूत्रे एतावन्तमेव कालम् यावद्द्वीन्द्रियगतौ पृथिवीगतौ च गमनागमने कुर्यात् २० इति प्रथमो गमो द्वीन्द्रियत्येति ।। द्वितीयं गर्म दर्शयति-'सो चेत्र' इत्यादि, 'सो चेव जहन्नकालटिइएस उत्रन्नो' स एव-बीन्द्रीय एव जघन्यकालस्थितिके पृथिवीकायिकेपृत्पन्नः' यदि जघन्यकाल स्थिलिकापृथिवीकारिनेषु स द्वीन्द्रियो जीव उत्पद्यते तदा-'एस चेत्र बत्तव्यया सव्वा' एपैच वक्तव्यता सर्श एषैव-प्रथम गमप्रदर्शितैम लऽपि वक्तव्यता उत्पादपरिमाणादिका वक्तव्या नात्र कोऽपि विशेष इति द्वितीयो गम इति । २ ।
तृतीयगर्म दर्शयति-'सोचेव' इत्यादि, 'सो वेव' इत्यादि. 'सो चेव उक्कोस. कालटिइएस्तु उपदनो' स एव-औधिको द्वीन्द्रिय जीव-एव उत्कृष्ट कालस्थिति केषु योग्य है वहां उत्पन्न होकर इलने काल तक द्वीन्द्रिय गति का और पृथिवी गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उस गति में गमनागमन करता है। यह हीन्द्रिय का ऐसा प्रथम गल है।
इसका छितीय गम ऐसा है तो चेव जहन्नकालदिए वचनो' वही हीन्द्रिय जीव जब जघन्ध काल की स्थितिबाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है तो उस सम्बन्ध में भी यही पूर्वोक्त प्रथम गम की वक्तव्यना कहनी चाहिये, अर्थात् उत्पाद परिमाण आदि की वक्तव्यता जिल्ला प्रकार से प्रथमगम में अभी २ प्रकट की जा चुकी है वैली ही पक्तव्यता इस दितीय गम में भी कहनी चाहिये इसमें और उसमें किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं है। ऐसा यह हित्तीय गम बीन्द्रिय का है।
हनीय गम इस प्रकार से हैं-'सोचेष उक्कोसकालहिएलु उववन्नो' वही द्वीन्द्रिय जीव जब उत्कृष्ट काल की स्थिति बालों में उत्पन्न અને પૃથ્વી કાયિકની ગતિનું સેવન કરે છે, અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગતિ માં ગમનાગમન કરે છે. આ રીતે આ બે ઈન્દ્રિય સંબંધીને पडी गम हो छ. ? .. . माना भी गम मा प्रमाणे छे-सो चेव जहन्नकालदिइएसु उववन्नो' એ દ્વીન્દ્રિય જીવ જ્યારે જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે તેના સંબંધમાં પણ આ પહેલા કહ્યા પ્રમાણે પહેલા ગમનું કથન કહેવું જોઈએ અર્થાત્ ઉત્પાત, પરિમાણ, વિગેરેનું કથન જે રીતે પહેલા ગમમાં બતાવેલ છે. એજ રીતે આ બીજા ગામમાં પણ કહી લેવું. પહેલા ગામના કથનથી આ બીજા ગમમાં કઈ પણ પ્રકારનું જુદાપણું નથી આ રીતે બે ઈન્દ્રિયવાળા જીવોના સંબંધનો આ બીજો ગમ કહ્યો છે. • वे श्री गमनु ४थन ४२वामी मावे छे-खो चेव उकोसकालदिइ 'एसु उववन्नो' से मे धनियवाणे सारे 6ष्ट अन स्थिति वा