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प्रमेयन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ २०९ पुद्गलानां कृतयुग्मादित्वम् इपरयुग्मा फल्योजा वेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' के गौतम ! 'ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा नो तेोगा नो. दावर जुम्मा नो कलिओगा' ओघादेशेनापि विधानादेशेनापि चतु:मदेशिकाः कृतः युग्मा एव भवन्ति नो योजा नो द्वापरयुग्मा नो फल्योजाः । 'पंचपएसिया जहा परमाणुपोग्गला' पञ्चप्रदेशिकाः पुद्गलाः यथा परमाणुपुद्गलाः परमाणुपुद्गलवत् कल्योजा एव भवन्ति न तु कृतयुग्माः, न व्योजाः, न द्वापरयुग्मा वा भवन्तीति । छपएसिया जहा दुप्पएसिया' षट्पदेशिकाः स्कन्धा यथा द्विपदेशिकाः षट्कल्पोजरूप हैं? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-गोयमा ! ओघादेसेण विविहाणादेसेण वि कडजुम्मा नो तेओगा नो दाचरजुम्मा, नो कलिओगा' हे गौतम ! चार प्रदेशों वाले समस्त स्कन्ध प्रदेशों की अपेक्षा से कृतयुग्मरूप ही होते हैं योजादि राशिरूप नहीं होते हैं, इसी प्रकार से वे भिन्न २ रूप से भी-स्वतन्त्र रूप से भी एक, एक होकर कृतयुग्मराशिरूप ही होते हैं, - अन्य योज द्वापरयुग्म और कल्पोजराशिरूप नहीं होते हैं ।
पंच पएसियो जहा परमाणुपोग्गला' पांच प्रदेशों वाले जो पुद्गल हैं वे समस्न परमाणु पुगलों की समानता होने से सामान्य रूप से चारराशिरूप होते हैं और विशेषरूप से केवल कल्योजरूप ही होते हैं, कृतयुग्म, ज्योज, और द्वापरयुग्मरूप नहीं होते हैं। 'छप्पएसिया जहा दुप्पएसिया' षट्नदेशिक स्कन्ध द्विप्रदेशिक स्कन्ध के जैसे सामा३५ छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री गौतमवामान ४ छ -'गोयमा ! ओघादेसेण वि विहाणादेसेण वि कडजुम्मा नो मोगा नो दावरजुम्मा, नो कलि ओगा', ७ गीतमा यार अशापा सघणा २४ थे। प्रशानी अपेक्षाथा त. યુગ્મ રૂપ જ હોય છે. એજ વિગેરે રાશિ રૂપ હોતા નથી. એજ રીતે તેઓ જુદા જુદા પ્રકારથી પણ એટલે કે સ્વતંત્ર રૂપથી પણ એક એકપણાથી કૃતયુગ્મ રાશિ રૂપ જ હોય છે એ જ રાશિ રૂપ કે દ્વાપરયુગ્મ રાશિ રૂપ અથવા કાજ રાશિ રૂપ હોતા નથી.
! 'पंच पएसिया जहा परमाणुपोग्गला' पांय प्रदेशवारे पुसा छ, ‘તેઓ સઘળા પરમાણુ પુદ્ગલેને સમાનપણથી સામાન્યપણાથી ચારે રાશિ રૂપ હોય છે. અને વિશેષપણાથી કેવળ કલ્યોજ રાશિ રૂપ જ હોય છે.
तयुभ, व्यास, भने ५२युभ राशि ३५ हाता नथी. 'छप्पएसिया जहा दूईएसिया' ७ प्रदेशकागे। २६५ में प्रदेशवाणा २३ घना ४थन प्रमाणे 'सामा
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