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भगवतीस्त्र दिए य फासिदिए य जिव्हेन्द्रियं च स्पर्शनेन्द्रियं च १३ । 'तिन्नि समुग्धाया' त्रयः समुद्घाताः वेदनाकषायमारणान्तिका भवन्तीति १४ । 'सेसंजहा पुढविक्काइयाणं' शेषम्-अवशेषं सर्वमपि यथा पृथिवीकायिकानां वेदना वेदाध्यवसायाः कथिताः तत्सर्वमपि तत्सदृशमेवावगन्तव्यमिति। केवलं पूर्वा पेक्षया यद्वैलक्षग्यं तदर्शयितुमाह-'णवरं' इत्यादि, 'णवरं ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्त' नवरम्-केवलं स्थितिर्जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम् 'उकोसेणं वारस संबच्छराइ' उस्कृष्टतो द्वादशसंवत्सराणि जघन्योत्कृष्टाभ्यां स्थितिः क्रमशोऽन्तर्मुहुर्तममाणा द्वादशसंवत्सरप्रमाणा च भवतीति १७ । 'एवं अणुवंधो वि' एवम् स्थितिसदृशइव अनुबन्धोऽपि जघन्येन अंतर्मुहूर्तरूप उत्कृष्टतो द्वादशसंवत्सररूपः, स्थितिस्वरूपत्वादेव अनुबन्धस्येति १९ । 'सेसं तंत्र' शेषम्-यत् स्थितीत्यादिकंसमुग्घाया' समुद्घात द्वार में इनके वेदना, कषाय और मारणान्तिक ये आदि के तीन समुद्घात होते हैं। 'सेसं जहा पुढविकाइयाण' अव शिष्ट वेदना, वेद, अध्यवसाय थे जिस प्रकार से पृथिवीकायिकों के कहे गये हैं उसी प्रकार से थे इनके भी जानना चाहिये, अच सूत्रकार पृथिवीकायिक के प्रकरण से इसके प्रकरण में जो विशेषता है उसे प्रकट करते हैं-'णवरं ठिई जहन्नेणं अंगोहत्तं, उक्कोलेणं बारससंबच्छराई यहाँ जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट से वह १२ वर्ष की है पृथिवीकायिक के प्रकरण में जघन्यस्थिति यद्यपि अन्तर्मुहूर्त की कही गई है अनुबन्ध की स्थिति के अनुसार अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट पारह वर्ष प्रमाण का होता है। अत: इससे उस प्रकरण में और इस प्रकरण में विशेषता होती है इस प्रकार से जब स्थिति में विशेषता है छ. 'तिन्नि समुग्धाया' समुद्धात द्वारा तमान वना, ४पाय, भने भारशान्ति से ऋण समुधात डाय छे. 'सेसं जहा पुढवीकाइयाणं' माडीनु વેદના, વેદ, અધ્યવસાય એ સ્થાનેના સંબંધનું કથન જે રીતે પૃથ્વિકાયિ. કોના સંબંધમાં કહેલ છે, એ જ પ્રકારથી તેઓના સંબંધમાં પણ સમજવું - હવે સૂત્રકાર પૃવિકાયિકના પ્રકરણ કરતાં આ પ્રકરણમાં જે વિશેષ पा' छ, तर प्रगट ४२ छे. 'णवर ठिई जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बारस संवन्छराई' अहियां धन्य स्थिति मे भतभुत नी छ, मन थी તે ૧૨ બાર વર્ષની છે. પૃવિકાયિકના પ્રકરણમાં જઘન્ય સ્થિતિ છે કે અંતર્ગહની કહેલી છે, પરંતુ ત્યાં ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષની કહી છે. જેથી આ પ્રકરણ કરતાં તે પ્રકરણમાં વિશેષપણું છે. આ રીતે જ્યારે