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प्रमेयखन्द्रिका टीका श०२४ उं. १२ सू० ३ द्वीन्द्रियेभ्यः पृ॰ नामुत्पत्तिनिरूपणम् ६९
'दो नागा दो अन्नाणा नियमं ' द्वे ज्ञाने द्वे अज्ञाने नियमतः मतिज्ञानं श्रुतज्ञानं चेति ज्ञानद्वयवन्तः, एवं मत्यज्ञानं श्रुताज्ञानं चेत्यज्ञानद्वयवन्तो नियमतस्ते भवन्तीति । तथा - 'णो मणजोगी' नो मनोयोगिनः, ते द्वीन्द्रिया जीवाः पृथिवीकाये उत्पित्सनो न मनोयोगिनो भवन्ति द्वीन्द्रियत्वेन तेषां मनसोऽभावात् । एवं वयजोगी वि कायजोगी वि' एवं वचोयोगिनोऽपि ते भवन्ति तथा काययोगिनोऽपि भवन्ति९ । 'उपओगो दुविहो वि' उपयोगो द्विविधोऽपि साकारोपयोगानाकारोपयोगद्वयवन्तो भन्ते इर्थ : १०, 'चचारि सन्नाओ' चतस्रः संज्ञा, भाहारभय मैथुनपरिग्रहा-' रूपाश्वतत्रः संज्ञा भवन्तीति ११ । 'चत्तारि कसाया' चत्वारः कषायाः क्रोधमानमायालोमाख्या भवन्तीति १२ । 'दो इंदिया पन्नता' हे इन्द्रिये महसें, इन्द्रियद्वयम् एकमेव तेषां भवतीति । के ते द्वे तत्राह - 'तेजहा' इत्यादि, 'तं जहा - जिब्सि ये मिश्र दृष्टि वाले नहीं होते हैं । 'दो नाणा दो अन्नाणा निधर्म' ज्ञान द्वारमें ये मतिज्ञानश्रुनज्ञानरूप दो ज्ञान वाले और मत्यज्ञान श्रुताज्ञान रूप दो अज्ञानवाचे नियम से होते हैं। योगद्वार में ये 'णो मणजोगी ' द्विन्द्रियों के मन नहीं होने के कारण मनो योगी नहीं होते हैं 'यजोगी वि कायजोगी वि' किन्तु ये वचन योगी और काय योगी होते हैं । 'उपयोगो दुबिहो वि' उपयोग द्वार में इनके साकारअनाकार दोनों प्रकार का उपयोग होता है । संज्ञाद्वार में 'चत्तारि सन्नाओ' ये आहार, भय, मैथुन और परिग्रह-इन चार प्रकार की संज्ञावाले होते हैं । कषायद्वार में - 'चन्तारि कलाषा' इनके क्रोध, मान, माया और लोभ ये चोर कषायें होती हैं । इन्द्रिय द्वार में दो इंदिया पला' इनके स्पर्शन और रसन ये दो इन्द्रियां होती है । 'तिनि
द्वारभां तेथे। मे ज्ञानवाणा होय छे, 'दो अन्नाणा नियम' तेमाने नियभथी મતિ અજ્ઞાન અને શ્રુત જ્ઞાન એ બે અજ્ઞાન હાય છે.ચૈાગ દ્વારમાં-ગો અળજ્ઞોળી' એ ઈંદ્રિયવાળા જીવા કે જે પૃથ્વિક યિકામાં ઉત્પન્ન થવવાળા છે. तेगोने मनोयोग होतो नथी. र है तेभने भन होतु नथी. 'एवं वयजागीवि कायजोगी वि' तेथे। वयन लेगी भने छाय योगी होय छे 'उवयोगा दुवि वि उपयोग द्वारसां तेओने साक्षर अनार भन्ने अहारना थियोग होय छे संज्ञा द्वारभां 'चत्तारि सन्नाओ' आहार, लय मैथुन, भने पि अह आ यार प्रहारनी संज्ञावाजा तेथे होय छे षाय द्वारभां - ' चत्तारि फलाया' तेमाने शेध, भान, भाया, भने बोल थे यारे उपाय होय छे. ઇન્દ્રિય દ્વારમાં તેઓને સ્પેન અને રસના (જીભ) એ એ ઈદ્રિયા હાય