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________________ vo भगवती दवट्टयाए' इति पोक्तं तदिहक्षेत्राधिकारात्-क्षेत्रस्यैव प्राधान्यात् परमाणुघणुका धनन्ताणुकस्कन्धा अपि विशिष्टपरिणामेन-एकक्षेत्रप्रदेशावगाढा आधाराधेययोरभेदोपचारादेकत्वेन व्यपदिष्टा भवन्ति ततश्च सर्वस्तोका एकप्रदेशावगादा: पुनला द्रव्यातयेति लकाकाशमदेशपरिमाणा एवेत्यर्थः । तथाहि-नास्ति-एता. रशः कश्चनाऽपि अकाशमदेशः य एकमदेशावगाहपरिमाणपरिणतानां परमाण्यादीनामवकाशदानपरिणामेन न परिणत इति । ' : 'सखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए सखेज्जगुणा' संख्येयपदेशावगादाः पुद्गला द्रव्यार्यतया संख्येयगुणा भवन्ति । अत्रापि क्षेत्रस्यैव प्राधान्यात् यहाँ पर 'सवयोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए' जो ऐसा कहा गया है वह क्षेत्र के अधिकार को लेकर कहा गया है । क्यों कि यहाँ क्षेत्र की ही प्रधानता है। परमाणु द्यणुक आदि अनन्ताणुक स्कन्ध भी विशिष्ट परिणामसे एक क्षेत्र प्रदेश में अगाढ होते हैं। क्यों कि आधार आधे में अभेद के उपचार से वे एक रूप से कहे जाते हैं। अतः द्रव्यरूप से एक प्रदेशावगाढ पुद्गल सस्तोक हैं इसका तात्पर्य यह है कि वे लोकाकाश के प्रदेशों के घराघर ही हैं। क्योंकि ऐसा कोई भी आकाश को प्रदेश नहीं है जो प्रदेशावगाह रूप परिणाम से परिणत हुए परमाणु आदिकों को स्थानदानरूप परिणाम से परिणत न हुआ हो। 'संखेज्जपएसोगाढा पोग्गला दबट्टयाए संखेज्जगुणा' संख्यातप्रदेशों में अवगाही जो पुदल हैं वे द्रव्यरूप से संख्यातगुणे अधिक हैं यहां पर भी क्षेत्र की ही प्रधानता है। इस से ऐसे स्कन्ध मान ४२वा पुगत सोयी १८५-मेछ। छ, मही या रे 'सव्व त्थोवा एगपएसोगाढा पोग्गला दवट्याए' मा प्रमाणे ४वामा मान्छे, ते ક્ષેત્રના અધિકારથી કહેલ છે કેમકે અહીંયાં ક્ષેત્રનું જ મુખ્યપણું છે પરમાણું, ઢિયણુક, વિગેરે અનંત ગુણવાળા સ્કંધ પણ વિશેષ પ્રકારના એક ક્ષેત્ર પ્રદેશમાં અવગાઢવાળા હોય છે. કેમકે આધાર અને આધેયમાં અભેદના ઉપચારથી તેઓ એક રૂપથી કહેવાય છે જેથી દ્રવ્યપણાથી એક પ્રદેશમાં અવગાહ થયેલ પુદ્ગલ સૌથી થડા છે કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–તેઓ કાકાશન પ્રદેશની બરોબર જ છે. કેમકે એ કેઈપણ આકાશને પ્રદેશ નથી કે જે એક પ્રદેશમાં અવગાહ રૂપ પરિણામથી પરિવૃત થયેલા પરમાણ આદિકને स्थान मा५५३५ परिणामथी परियत न थया डाय 'संखेज्जपपस्रोगाढा पोग्गला दबयाए संखेज्जगुणा' सन्यात प्रदेशमा समानापामा पुरता • બતાવ્યા છે, તે દ્રવ્યપણથી સંખ્યાતગણું વધારે છે. અહીંયાં પણ ક્ષેત્રનું જ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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