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________________ 1 heater टीका श०२५ उ. १ सू०७ परमाणुपुतलानां अल्पबहुत्वम् -- मंवन्ति । एवं एपर्ण गमेणं तिप्पएयोगादेर्दितो पोग्गले हिंतो दुप्पएसोगाढ़ा पोळा दाट्टयाए बिसेसाडिया' एवमेवेनं गमकेंन त्रिपदेशावगादेभ्यः पुद्गलेयो द्विपदेशावगादाः पुद्गलाः द्रव्यार्थतया द्रव्यस्वरूपेण विशेषाधिका भववीति । विशेषाधिका इति समधिकार, न तु द्विगुणादय इति । 'जाब दसपरसोग हिंदी पोरगले हिंतो' नव एसो गाढा पोग्गला दण्डयाएं विसेसाहिया यात्रदशप्रदेशावागदेभ्यः पुद्गलेभ्यो नत्र प्रदेशावगाढा : पुद्गला द्रव्यार्थतया विशेषाधिका भवन्तीति । 'दसपरसोग देहिंतो मोग्गलेहिंतो 'सखेनपरसोगाढा पोग्गला दबाए बहुया दशम देशारंगा डेभ्यः पुद्गलेभ्यः संख्यांतप्रदेशावगाढाः पुद्गलाः द्रव्यार्थतया बहुकाः 'संखेज्नपएसो गाडेहिंडो पोगले हिंतो असंखेज्जपएसो गाढा पोग्गला दव्त्रद्वयाए बहुया' संख्येयप्रदेशावगाढेभ्यः निप्पएसोगदेहिंतो पोग्गलेहिंतो दुप्पएसोगाढा पोग्गला पाए विसेसाहिया' इस प्रकार इस पाठ द्वारा यह समझना चाहिये कि जो पुद्गल आकाश के तीन प्रदेशों में अवगाढ आश्रित हैं उन पुद्गलों से आकाश के दो प्रदेशों में अवगाढ हुए पुद्गल द्रव्यरूप से विशेषाधिक हैं विशेषाधिकपद से 'समधिक है' ऐसा अर्थ लेना 'दूने है" ऐसा अर्थ नही लेना । १ 'जाव दस एमोगादेर्हितो पोग्गलेहिंतो नव पएसोगाढा पोग्गला व्याए विसे साहिया' यावत् दश प्रदेशों में अवगाढ हुए पुद्गलों प्रदेशों में अवगाढ पुद्गल द्रव्यरूप से विशेषाधिक हैं । 'दस परसोगा देहितो पोग्गलेहितो संखेज्जपएसोगाढ़ा पोला agre बहुया' दशप्रदेशों में अवगाढ हुए पुद्गलों से संख्यात प्रदेशों में अवअवगाढ पुद्गल न्यूरूप से बहुत हैं । संखेज्जपए सोगा देहिंतो पोरग लेहितो असंखेज्जपएसो गाढा पोग्गला दबाए बहुगा' इसी प्रकार " पोला या विसेसाहिया' मा पडथी मे समन्वु लेखे है-ने युद्धो આકાશના ત્રણુ પ્રદેશમાં અવગાઢ થયેલા છે તે પુદ્લાથી આકાશના એ પ્રદેશામાં અવગાઢ થયેલા પુત્લા દ્રવ્યપણાથી વિશેષાધિક છે. વિશેષાધિક પદથી સમધિક છે” તેવા અથ લેવા ‘ખમણા છે' તેવા અથ લેવા નહીં, 2 'जाब दत्रपएसोग|ढेहि’तो ! पोग्गकेहि तो नवपएसोगाढा पोग्ला - याए विसेस्राहिया' यावत् इस प्रदेशमां भवगाढ थयेला युद्द्धसेा ४रतां सध्यात प्रदेशाभां अवगाढ थयेसा युगसेो द्रव्य ३थी वधारे हे 'दसपएसोगा देहि तो पाँग्गलेहिं तो संखेज्जपरसोगाढा पोग्गला दव्त्रयाए बहुया' इस अहेशामा अव ગાઢ થયેલા પુદ્ગલેથી સખ્યાત પ્રદેશેમાં અવગાઢ થયેલા પુદ્ગલેા દ્રવ્યપણથી पधारे छे. 'संखेज्जपएसोगादेहिं तो पोग्गलेदितो असखेज्जपरसोगादा पोग्गला
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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