SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 831
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयबा का टीका २०२५ उ.४ सू०६ परमाणुपुद्गलानां संख्येयत्वादिकम् ८१३ मदेशिकम्कन्धानां च कतरे कतरेभ्योऽल्पा वा बहुका वा तुल्या वा विशेषाधिका चा-उति प्रश्नः १ भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे-गौतम ! 'दसपएसिएरितो बंधेहितो संखेज्जपएसिया खंधा दबट्टयाए बहुया' दशपदेशिकस्कन्येभ्यः संख्यातमदेशिकाः स्कन्याः द्रव्यार्यतया-अधिकाः, दशपदेशिकापेक्षया पुनः संख्यातादेशिका बहवो भवन्ति, संख्यातस्थानानां बहुत्वादिति । 'एएसिणं भंते ! संखेज्ज० पुच्छा ? एतेषां खलु भदन्त | संख्यातप्रदेशिकानामसंख्यातप्रदेशिकानां च कतरे कतरेभ्यो द्रव्यार्थतयाऽधिका वा भवन्तीति प्रश्नः ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'संखेज्जपएमिएदितो खंधे हितो असंखेज्जपएसिया बंधा दवट्टयाए पहुया' सख्यातादेशिकेभ्यः स्कन्धे. स्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! दश प्रदेशो पाले स्कन्धों और संख्यातप्रदेशिक स्कंधो के बीच में कौन स्कन्ध किन स्कन्धों से अल्प हैं ? कौन किन से बहुन हैं ? कौन किन के घराघर हैं? और कौन किन से विशेषाधिक है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रमुश्री कहते हैं-'गोयमा! दसपएसिएहितो खंधेहिंतो संखेज्जपए. मिया खंधा दवट्टयाए घडया' हे गौतम | दशप्रदेशिक स्कन्धों से संख्यात प्रदेशिक स्कन्ध द्रव्यरूप से अधिक हैं। क्यों कि संख्यातके स्थान पहुन होते हैं । 'एएसि णं भंते ! संखेज्ज पुच्छा' इस सूत्र पाठ द्वारा श्रीगौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है कि संख्यातप्रदेशों वाले स्कन्धो में और असंख्यात प्रदेशों वाले स्कन्धों में कौन किन से द्रव्यरूप से अधिक होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते है-'गोयमा! संखेज्जपएसिस्तिोखंधेहितो असंखेज्जपएसिया खंधा दबट्टयाए बहया' પ્રશ્રીને એવું પૂછે છે કે-હે ભગવન્ દસ પ્રદેશેવાળા સ્ક છે અને સંખ્યાત પ્રદેશવાળા. સ્કન્ધામાં કયા સ્કંધે કયા ઔધે કરતાં અલપ છે? કયા સ્કો કયા કંધથી વધારે છે? કયા સ્કંધ કયા કંધોની બરોબર છે? કયા છે नाथी विशेषाधि छ ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ -'गोयमा । उस पएसिएहितो खंधेहि तो सखेज्जपएसिया खंधा व्वट्ठयाए बहुया' हे गीतम! इश પ્રદેશવાળા બે કરતાં સંખ્યાત પ્રદેશોવાળા ઔધો દ્રવ્યપણુથી અધિક છે. કેમકે સંખ્યાતના સ્થાન વધારે છે. ___ 'एसि ण भंते ! संखेज्ज पुच्छा' मा सूत्रपा8 वा श्री गौतमस्वामी પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું કે-સંધ્યાત પ્રદેશાવાળા સ્ક ધમાં અને અસંખ્યાત પ્રદેશેવાળા સ્કંધમાં દ્રવ્યપણાથી કેણ કેનાથી અધિક હોય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री छे ४-'गोयमा! संखेज्जपएसेहि तो खंधेहि तो असंखेज्ज.
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy