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________________ प्रमेयखन्द्रिका टीका श०२५ उ. ३ सू०७ प्रकारान्तरेण श्रेणीस्वरूपनिरूपणम् ७१७ आचारो यावद् दृष्टिवादः, आचाराङ्गसूत्रादारभ्य दृष्टिवादपर्यन्तं द्वादशमकारकमङ्ग शास्त्रमिति । 'से किं तं आयारो' अथ कोऽयमाचारः ? यद्वा किं तद्वस्तु यदाचारशब्देन व्याख्यातं भवतीति प्रश्नः ? भगवानाह - ' आयारे' इत्यादि । ' आया रेण समणाणं णिग्गंथाणं' आचारे खलु श्रमणानां निर्ग्रन्थानाम्, आचारे - अधिकरणभूते आचारे - आचाराङ्गमूत्रे खलु शब्दो वाक्यालङ्कारे। ' आयार गोयरपरूवणा भाणियव्या' आचारगोचर० आचारगोचरेत्यादिना - इदं ज्ञापितं भवति । 'आयारगोयरविणय वेणइय सिक्खाभासा अभासा चरणकरणजायामाया वित्तीय आघवे ज्जंति ३ । आचारगोचरविनय - वैनयिक - शिक्षा-भाषा-भाषा-चरण-करण यात्रा मात्रा वृत्तय आख्यायन्ते प्रज्ञाप्यन्ते - मरूप्यन्ते इति । तत्राचारो ज्ञानादि पञ्चविधः । गोचरोभिक्षाग्रहण विधिलक्षणः, विनयो ज्ञानादिविनयः वैनयिकं विनयस्य फलम् वायो' आचाराङ्ग यावत् दृष्टिवाद अर्थात् आचाराङ्ग से लेकर दृष्टिवाद तक का समस्त आगम गणिपिटक कहा गया है । 'से कि त आयारो' हे भदन्त | आचारात क्या है ? अर्थात् ऐसी वह कौनसी वस्तु है जो आचाराङ्ग शब्द से व्याख्यात होती है ? इस प्रकार गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'आधारेणं समगाणं णिग्गंथाणं आधार गोयरपरूवणा भाणियव्वा' हे गौतम ! आचारांग सूत्र में श्रमण निर्ग्रन्थों के आचार एवं गोचर भिक्षाविधि आदिरूप चारित्र धर्म का प्ररूपण किया है 'आधारगोवर' इत्यादि शब्द से यह ज्ञापित है- 'आयारगोयर विणयवेणइय सिक्खामासा अभासा चरण करण जायामावावित्तीआ आघवेज्जंति' यहां ज्ञानादि के भेद से आचार पांच प्रकार का कहा गया है भिक्षाग्रहणविधि गोचर शब्द से कही 'आयारो जाव दिट्टिवायो' मायारांश यावत् दृष्टिवाह अर्थात् मायारंगधी લઈને દૃષ્ટિવાદ સુધીના સઘળા આગમા શુિપિટક કહ્યા છે. - 'से किं त' आयारो' हे भगवन् भयारांग मे शुद्ध छे ? अर्थात् खेवी તે કઈ વસ્તુ છે ? કે જે આચારાંગ શબ્દથી કહેવાય છે ? શ્રી ગૌતમસ્વામીના या प्रश्नना उत्तरभां प्रभु श्री गौतम स्वामीने हे छे है- 'आयारेणं समणार्ण णिग्गंथाणं आयारगोयरपरूत्रणा भाणियव्वा' हे गौतम आयारांगसूत्रमां श्रभय નિગ્રન્થાના આચાર અને ગાચર-ભિક્ષાવિધિ વિગેરે રૂપ ચારિત્રધમની પ્રરૂ या रवामां यावी हे 'बायारगोयर' इत्यादि शब्दथी मा समलय छे. 'आयार गोयर विजयवेणय सिक्खा भासा अभ साचरणकरणजायामाया बित्तीओं आघवेज्जंति' अडींयां ज्ञानाहिना लेहथी मायार पांच प्रारना उस छ,
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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