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________________ प्रमेयमन्दिका टोका श०२५ उ.३ सू०७ प्रकारान्तरेण श्रेणीस्वरूपनिरूपणम् १११ तौर-त्रप्सनाड्या-गत्वा पुनस्तद्वापपादिौ उत्पयते-सा एक खा, एकस्यां. दिशि वामादि पार्श्वलक्षणायां खस्याऽऽकाशस्य लोफनाडीव्यतिरिक्तलक्षणस्य सद्भावादिति । इयं च-द्वि-त्रि-चतुर्वक्रोपेनाऽपि क्षेत्रविशेषाश्रिता-इति भेदेन कथिता इति । स्थापना। ८-४ । पश्चमी-'दुहओ खहा' विधातः खा, असनाड्या वामपादे स्वमनाडी प्रविश्य तया नाडयेय गत्वा अस्या सपनाड्या एत्र दक्षिणपादिौ यया उत्पद्यते सा द्विधातः खा इत्युच्यते । नाडीवर्भूितयोमिदक्षिण पार्श्वलक्षणयोर्द्वयोराकाशपदेशयो स्तया रपृष्ट चादिति। स्थापना चेयम्-५-१५ । पष्ठी-'चकवाला, चक्रमालम्-मण्डलम् यया श्रेण्या परमावादिमण्डलेन परिभ्रम्य समुत्पद्यते सा चक्र वाला, स्थापना चैवम्-०६। 'अदचक्क वाला' अर्ध चक्रवाला पुद्गल प्रसनाडी के वासपार्थादि भाग से प्रसं नाडी में प्रवेश करता है और पुनः उस वलनाडी द्वारा जाकर उसके वामपादि भाग में उत्पन होता है। वामपाश्वादिरूप एक दिशा में लोक नाडी व्यतिरिक्त आकाश के लद्भाव से इस श्रेगी को 'एकतः खा' कहा गया है। यह श्रेणि दो तीन चार समय की वक्रगति सहित होती है । फिर भी क्षेत्र की विशेषता से इले जुदा कहा गया है। इसका आकार .८ इस प्रकार से है। पंचमी श्रेणी 'दुहओ खहा' द्विधातः खा' है जीव जिस श्रेणि से प्रसनाडी के घामपार्थ आदि से अलनाडी में प्रवेश करके एवं उसी प्रसनाडी से जाकर उसके ही दक्षिणपार्श्व आदि में उत्पन्न होता है, वह विधाताखा है। क्यों कि नाडी के पहिभूत वामदक्षिणपाच रूप आशाशप्रदेशों का इस श्रेणि के द्वारा स्पर्श होता है । जिस श्रेणि द्वारा परमाणु आदि गोल भ्रमण कर के उत्पन्न होते हैं वह चक्र बाल श्रेणि है । इसका आकार ० इन प्रकार से है । (६) जित श्रेणि द्वारा परमाणु आदि अर्ध તેના વામપાર્થ વિગેરે ભાગમાં ઉત્પન્ન થાય છે. વામપાર્ધાદિરૂપ એક દિશામાં सोना व्यतिरित साशन समाथी २ श्रेणीन 'एकत खा' । छे. આ શ્રેણી બે ત્રણ અને ચાર સમયની વક્ર ગતિવાળી હોય છે તે પણ ક્ષેત્રના વિશેષ પણાથી જુદી કહેલ છે. તેને આકાર -૮ આ રીતે છે પાંચમી श्रेणी 'दहओ खहा' विधात: मा छे. २२ श्रेशीथी सनाडीना पाया આદિથી ત્રસનાડીમાં પ્રવેશ કરીને અને એજ ત્રસનાડીથી જઈને તેનાજ દક્ષિણપા વિગેરેમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે દ્વિધાત ખા છે કેમકે નાડીની બહારના વામદક્ષિણ પાર્શ્વ રૂપ-ડાબા જમણા ભાગ રૂપ આકાશ પ્રદેશેને આ શ્રેણી દ્વારા સ્પર્શ થાય છે. જે શ્રેણી દ્વારા પરમાણુ વિગેરે ગોળ ભ્રમણ કરીને ઉત્પન્ન થાય છે, તે ચક્રવાલ શ્રેણી કહેવાય છે. તેને આકાર ૦ આ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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