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चन्द्रिका टीका श०२५ उ०३ ०३ प्रदेशतोऽवगाहतश्च संस्थाननि० ६४५ जुम्मपए सिए से जहन्नेणं वारसपएसिए बारसपएसो गाढे' तत्र खल्ल यत् तत् युग्ममदेशिकं तद जघन्येन द्वादशमदेशिक द्वादशपदेशावगाढं प्रज्ञप्तम् 'उक्कोसेणं अनंत पएसिए तहेव' उत्कर्षेणाऽनन्तप्रदेशिक तथैव असंख्यात प्रदेशावगाढं चेति ॥ ०३॥ अनन्तरपूर्व संस्थानानि निरूपितानि अथ संस्थानान्येव प्रकारान्तरेण निरूपयितुमाह- 'परिमंडले णं भंते' इत्यादि ।
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मूलम् - परिमंडले णं भंते ! संठाणे दव्वट्टयाए किं कडजुम्मे तेओए दावरजुम्मे कलिओए ? गोयमा ! नो कडजुम्मे णो ओए णो दावरजुम्मे कलिओए । वट्टे णं भंते ! संठाणे दवट्टयाए० एवं चेत्र एवं जाव आयए । परिमंडला णं भंते! संठाणा दट्टयाए किं कडजुम्मा तेओया ? पुच्छा गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कड जुम्मा सिय तेओगा सिय दावरजुम्मा सिय कलिओगा।
है । इसके ऊपर अन्य और दो प्रतर स्थापित किये जाते हैं। इस क्रम से वह ४५ पैंतालीस प्रदेशों वाला होता है । 'उक्को सेणं अनंत पएसिए तहेव' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशोंवाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में अवगाहनावाला होता है । 'तत्थ णं जे से जुम्मपएसिए से जहनेणं बारसपएसिए बारसपएसो गाढे' तथा जो युग्मप्रदेशिक घना यत है वह जघन्य से १२ बारह प्रदेशोंवाला होता है और आकाश के १२ बारह प्रदेशों में उसका अवगाढ होता है । 'उक्को सेणं अनंतएसिए तहेव' तथा उत्कृष्ट से यह अनन्त प्रदेशों वाला होता है और आकाश के असंख्यात प्रदेशों में यह अवगाढ होता है | सू० ३||
આની ઉપર ખીજા બે પ્રતરા સ્થાપવામાં આવે છે, આ ક્રમથી તે પિસ્તાળીશ अहेशोवाणु थर्ध लय हे, 'उक्क्कोसेणं अणतपरसिए तद्देव' तथा 'उत्कृष्टथी ते. અન તપ્રદેશાવાળું હેાય છે. અને આકાશના અસખ્યાત પ્રદેશેામાં તે અવગાહુના वाणु होय छे. 'तत्थ णजे से जुम्मपधिए से जहन्नेणं बारसपएसिए बारस पेएमो गाढे' तथा तेमां ने युग्भ प्रदेशवाणु धनायत छे. ते धन्यथी १२ मार अहेशीવાળુ હાય છે અને આકાશના ૧૨ ખાર પ્રદેશેામા તેને અવગાઢ હાય છે. 'उकोसेणं अणतपरसिए तद्देव' तथा उत्सृष्टथी ते मनत प्रदेशेोषाणु होय छे. અને આકાશના અસખ્યાત પ્રદેશમાં તેને અવગાઢ હોય છે. સૂકા
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