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________________ reeद्रिका टीका पा०२५ उ. ३ ०१ संस्थान निरूपणम् ६०१ स्थानि संस्थानानि द्रव्यार्थतया असंख्येयगुणाधिकानि भवन्तीति अनित्थंस्थसंस्थानवन्ति द्रव्याणि परिमण्डलादीनां द्वयादिसंयोगनिष्पन्नत्वेन तेभ्योऽति बहूनीति कृत्वा पूर्वेभ्योऽसंख्यातगुणानि अधिकानि उक्तानि । 'परसट्टयाए' प्रदेशाथतया प्रदेशरूपमर्थ माश्रित्य कथयति - 'सव्त्रत्थोवा परिमंडलठाणा पएसट्टयाए ' सर्व वोकानि परिमण्डलसंस्थानानि मदेशार्थतया --अधिकतर मदेशादगा हित्वेन सर्वा पेक्षया खोकानि मदेशानां द्रव्यानुसारित्वात् । 'वट्टा संठाणा पर सट्टयाए संखेज्ज - गुणा वृत्तानि संस्थानानि प्रदेशार्थतया परिमण्डलसंस्शनापेक्षया संख्येयगुणाधिकानि नयन्ति प्रदेशरूपमाथि ये ते 'जहा दव्वट्टयाए तदा पएसइयाए वि' यथा द्रव्यपर्थत नऽऽल्पबहुत्वं संस्थाना कथितं तथा प्रदेशार्थ तयाऽपि अलअपेक्षा आपन संन्धान द्रव्यार्थरूप से सख्यातगुणित है, 'अणित्थंथां संठाना दबाए असंखेज्जगुणा' और आयत संस्थान की अपेक्षा अनित्थंथ (नियताकार वाला) संस्थान द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणित है । क्योंकि अणित्त्य संस्थानवाले द्रव्य परिमंडलादिकों के दो आदि संयोग से face होने के कारण उनसे बहुत अधिक है - इस कारण से वे पूर्व की अपेक्षा असंख्यातगुणित कहे गये हैं 'पएसघाए' प्रदेशरूप अर्थ को आश्रित करके 'सम्वत्थोवा परिमंडलठाणा' सब से कम परिमण्डल (चुडी के आकार जैसा गोल) संस्थान है। क्योंकि परिमंडल संस्थान अधिक प्रदेशको अवगाहित करने वाला होता है, एवं उस में प्रदेश द्रमानुरूप होते हैं । 'वहा संठाणा पएसडपाए संखेज्जगुणा' वृत्तसंस्थान (गोलाकार लड्डु के आकार जैन्या प्रदेशरूप अर्थ की अपेक्षा से परिमंडल संस्थान से गुणा अधिक है 'जहा दव्वट्टयाए तष्ठा पएलट्टयाए वि' उरता आायत संस्थान द्रव्यार्थ यथाथी संज्यातगागु छे. 'अणित्थंथा ठाण दत्र्श्ठुयाए अस खेज्जगुणा' आायत संस्थान ४२ता अनित्यस्थ (अनियतार) સંસ્થાન દ્રષા પણાથી અસખ્યાતગણું છે, કેમકે અનિત્યસ્થ સંસ્થાન વાળુ द्रव्य, પરિમ ડલ વિગેરેના બે દિ સયાગથી સપન્ન હેાવાના કારણે તેનાથી ખડું અધિક છે તે કારણથી તેએ પૂર્વાંની અપેક્ષાએ અસખ્યાત ગણા કહ્યા छे. 'पए सट्टयाए' प्रदेश३य अर्थना यांश्रय उरीने 'सव्वत्थोवा परिमंडल संठाणा' સૌથી ક્રમ પરિમલ (ચુડીના આકાર જેવું ગાળ) સ સ્થાન છે. કેમકે પરિમ ડેલ સ સ્થાન વધારે પ્રદેશનું અવગાહન કરવાવાળુ* હૈાય છે. તથા તેમાં सखेज्जगुणा' वृत्त प्रदेश द्रव्य प्रमाणे होय छे 'वट्टा ठाणा परसट्टयाए (લાડુના આકાર જેવુ' ગેાળ) સસ્થાન પ્રદેશરૂપ અની અપેક્ષાથી પરિ मंडल सस्थानथी सभ्याता वधारे छे. 'जहा दव्वट्टयाए तहा पट्टयाए વિ' જે પ્રમાણે દ્રા ની અપેક્ષાથી સંસ્થાનાના સ્તક વિગેરે કહ્યા છે, એજ भ० ७६
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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