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________________ ४९६ भगवतीस कदेवानां स्थितिः सातिरेका भणितव्या, सैव सनत्कुमारदेवस्य या स्थितिः सैव स्थितिः सातिरेका सागरद्वयोपमा जघन्या उत्कृष्टा सप्त सागरोपमा सातिरेका माहेन्द्रदेवस्य भवतीत्येतदेव वैलक्षण्यमन्यत्सर्वं रानत्कुमारवदेव ज्ञातव्यमिति भावः । ' एवं वंभलोग देवाणं वित्तन्वया' एवं माहेन्द्रदेववदेव ब्रह्मलोकदेवा-नामपि वक्तव्यता ज्ञातव्या । 'नवरं वंभलोग ठिइ' संदेहं च जाणेज्जा' नवर ब्रह्मलोकस्थितिं जघन्यतः सप्त सागरोपमरूपाम् उत्कृष्टतो दशसागरोपमरूपां तथा फायसंवेधं च स्व स्त्र भवापेक्षया स्थितिद्वयं संमेल्य जानीयात् । अन्यत् सर्व माहेन्द्र देव ज्ञातव्यमिति । 'एवं नाव सदस्सारो' एवम् ब्रह्मलोकनदेव यावत् की स्थिति कही गई है, उसकी अपेक्षा इस प्रकरण में माहेन्द्रकदेवों की स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम की जघन्य से और सातिरेक सप्त सागरोपम की उत्कृष्ट से कहनी चाहिये । वस यही स्थिति को लेकर उस प्रकरण से इस प्रकरण में विशेषता है और कोई विशेषता नहीं है। 'एवं वं लोगवाणं वि वक्तव्या' माहेन्द्रदेवलोक की जैसी यह वक्तव्यता प्रकट की गई है। ऐसी ही वक्तव्यता, ब्रह्मलोक देवों को भी है । 'नवरं वंभलोगठि संवेहं च जाणेज्जो' परन्तु ब्रह्मलोकदेवों की स्थिति जघन्य से सातसागरोपम की है और उत्कृष्ट से१० दस सागरोपमकी है । तथा काय संवेध अपने २ भव की अपेक्षा दो स्थिति को मिलाकर के होता है । इस प्रकार से पूर्ववकरण की अपेक्षा इस प्रकरण में भिन्नताः है- बाकी का और सच कथन मान्द्रदेव के ही जैसा है । ' एवं जाव Read' ब्रह्मलोकदेव के जैमी ही यावत् सहस्रार देव पर्यन्त की કુમારની સ્થિતિ કહી‘ છે, તે કરતાં આ પ્રકરણમાં માહેન્દ્ર દેવેાની સ્થિતિ કંઇક વધારે એ સાગરે પમની જધન્યથી અને સાતિરેક સત સાગરાપમની ઉત્કૃષ્ટથી" કહેવી જોઇએ. આ રીતે સ્થિતિના સંબંધમાં તે પ્રકરણુ કરતાં આ પ્રકરણમાં विशेषपाए थे. मीनु है। या अरंतु विशेषया नथी, 'एवं बंभलोगदेवाणं वि वत्तंत्र्त्रया' मा भाहेन्द्र देवसाउनु उथन ने प्रमाणे छे, भेन श्रभाषेनु उधना देवानु पशु छे, 'नजर' बंभलोगठिइ संवेह च जाणेज्जा' परंतु બ્રાલેક દેવાની સ્થિતિ જઘન્યથી સાત સાગરોપમની છે,અને ઉત્કૃષ્ટથી દસસાગરાપમની છે તથા કાયસ વેધ પાત -પેાતાના ભત્રની અપેક્ષાથી એ સ્થિતિને મેળવવાથી થાય છે..આ રીતે પહેલાના પ્રકરણ કરતાં આ પ્રકરણના કથનમાં જુદા પણુ' આવે છે, બાકીનું ખીજું સઘળું કથન માહેન્દ્ર દેવના કથન-પ્રમાથેનુ
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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