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- भगवतीसूत्रे विज्ञेयमिति, अन्यत्सर्वं पूर्वोक्त मेव किन्तु शरीरावगाहना जघन्यो कृयागं मूल-, सूत्रोक्तमेव अवगन्तव्यमिति । 'मज्झि नगमर' मध्यमगमके, अयमपि पूर्गत नीतिमनुसृत्य त्रिभिरेक एव गमः, पश्चमषष्ठयोरत्रवान्तर्भावात्, ते नात्र मध्यमगम के इति माध्यमिकगमत्रये शरीरावगाहना 'जहन्नेणं सातिरेगाई नवधणुपयड' जय. न्यता सातिरेकाणि नवधनुःशतानि 'उक्क से ग वि सारिरेगाई नवधणुपयाई उतापेनाऽपि शरीरानगाहना सातिरेकाणि नव धनु'शताये जमा पछि तिम् गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाई' पश्चिमेपु-चरमेपु त्रिषु सप्तमाष्टमनवमगमकेषु शीरावगाहना जघन्येन त्रीणि गव्यूतानि तथा-'उकोसेण वि विन्नि गाउयाई' सुषमादि काल में उत्पन्न हुए मनुष्यों की अपेक्षा से कही गई है ऐसा समझना चाहिये। बाकी का अन्य सब कथन पूर्वोक्त जैसा ही है। तथा 'मज्झिगमए' मध्यम के चतुर्थ गम में-यह पूर्वोक्त नीति के अनु सार तीन गमों का एक गम हुमा है-क्योंकि यहां पांचवें और छठे गमका अन्तर्भाव हो गया है। इसलिये माध्यमिक तीन गमक में शरीरावगाहना 'जहन्नेणं सातिरेगाई नव धणुपयाई जघन्य से कम अधिक ९०० धनुष की है और 'उको सेण वि सातिरेगाई नव धणु. सयाई उत्कृष्ट से भी कुछ अधिक ९०० धनुष की है। तथा पच्छिमेतु तिनु गमएप्लु जहन्नेण तिन्नि गाउयाई' पश्चिम के तीन गमकों में-सातवे,
आठदे और नौवें इन गाकों में शरीरावगाहना जघन्य से तीन कोश की है, तथा-'उनकोसेण वि तिनि गाउयाइ' उत्कृष्ट से भी तीन कोश
ત્રણ ગાઉની છે. આ ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના કેવળ સુષમ વિગેરે કાળમાં ઉત્પન્ન - થયેલા મનુષ્યની અપેક્ષ થી કહેલ છે. તેમ સમજવું. બાકી બીજુ તમામ ४थन ५९॥ ४॥ प्रभानु । छे तथा 'मझिमगमए' मध्यना याया ગમમાં આ પહેલા કહેલ પ્રકારથી ત્રણ ગમેને એક ગમ થયે છે. કેમકેઅહિં પંચમ અને છઠ્ઠા ગમને અંતર્ભાવ થઈ ગયો છે. તેવી મર્થના त्रय मा शरीरनी अवगाहना 'जहन्नेण सातिरेगाई णव धणुसयाई' १५ न्यथी ४४४ क्यारे ८०० नसे धनुषनी छे. भने 'उक्कोसेण वि सातिरेगाई 'णव धणुसयाइ' दृष्टयी ५९ ४४४ क्यारे ८०० नसे धनुषनी छे. तथा 'पच्छि मेसु तिसु गमएसु जहणेणं तिन्नि गाउयाइ' can 'त्रय सभामा એટલે કે-સાતમાઆઠમા અને નવમા આ ગામમાં શરીરની અવગાહના धन्यथी त्रास-मर्थातू - Gनी छे. तथा 'उक्कोसेण वि तिन्नि गाउ