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________________ भगवती सूत्रे ४२० 'सो चैव जहन्नकासि उपवनो' स एव संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकःजघन्य कालस्थितिकवानव्यन्तरेषु उत्पन्नो भवेत् तदा - 'जहेव नागकुमाराणां वितियगमए वक्तव्या२' यथैव नागकुमाराणां द्वितीयगमके वक्तव्यता तथैव निरवशेषा अत्रापि ज्ञातव्या । नागकुमाराणां द्वितीयगमवक्तव्यता प्रथमगमसमानैव, भेदः केवलमेतावानेव यत्-स्थितिः - जघन्येन उत्कर्षेण च दशवर्षसह -- त्राणि, काय संवेधस्तु काल | देशेन जघन्येन दशभिर्वर्षसहस्रैरभ्यधिका सातिरेका पूर्वकोटिः तथा उत्कृष्टतो दशभिर्वर्षसहस्त्रैरभ्यधिकानि त्रीणि पल्पोपमानि इति २ । ' सो चैत्र उकोसकालरि उपवन्तो जवन्नेणं पलिओम और इतने ही काल तक वह उस गति में गमनागमन करता है।' ऐसा यह प्रथम गम है । 1 'सो चेव जहन्नकालहिए जबबनो' यदि वही असंख्यात वर्षायुष्क संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव जघन्यकाल की स्थिति ardarauni में उत्पन्न होता है तो वहां 'जहेव नागकुमा राणां वितिगम वत्तवया २' नागकुमारों के द्वितीय गमक में जैसी वक्तव्यता कही गई है उसी प्रकार से वह सब वक्तव्यता यहां पर भी कहनी चाहिये । तात्पर्य यही है कि नागकुमारों के द्वितीयगम की वक्तव्यता प्रथमगम के जैसी ही है । परन्तु भेद उसकी अपेक्षा इस द्वितीय गम की वक्तव्यता में केवल इतना सा ही है कि स्थिति जघन्य से एवं उत्कृष्ट से १० हजार वर्ष की है । तथा-कायसंवेष काल. की अपेक्षा जघन्य से १० हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि का है । तथा उत्कृष्ट से १० हजार वर्ष अधिक ३ पल्योपम का है। ऐसा यह द्वितीय गम है । 1 " ગતિનુ સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગતિમાં ગમનાગમન ४२, छे, से प्रभाषेनी भी पहेली, गभ ४ह्यो छे. 1 .. सध 'सो चेव जहन्नका लट्ठिएस उववन्नो' ले ते असभ्यातवर्षायुष्षु स ज्ञी यथे ન્દ્રિયતિય ચર્ચાનિવાળા જીવ જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળા વાન ન્યન્તમાં ઉત્પન્ન थाय छे, तो त्यां 'जद्देव नागकुमाराणं वितियगमए वत्तन्बयार' नागडुभारोना श्रील ગમમાં જે પ્રમાણેનું કથન કરવામાં આવ્યુ છે, એજ પ્રમાણેનું તે કથન અહિયાં પણ કહેવુ જોઈ એઃ તાત્પ એજ છે, કે-નાગકુમારાના ખીજા गभनु, स्थन पडेसा गम प्रभानु छे. परंतु सा भरती भा जीन शमना उथनभां ठेवण भेटलो रहर छे, -स्थिति वन्यथी અને ઉત્કૃષ્ટથી ૧૦ દસ હજાર વર્ષોંની છે. તથા કાયસ વેષ કાળની અપેક્ષાથી જધન્યથી દસ હજાર વર્ષ અધિક સાતિરેક પૂર્વ કોટિના છે, તથા ઉત્કૃષ્ટથી - इस, डेन्जर वर्ष, स्मधि४ उ त्रयु पढ़यायमनेा छे. से प्रभाचे या जीले शुभ छे, ' " 3 .. 32
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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