________________
प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ २२ आनतादिदेवेच मनुष्येपूत्पत्तिः - ४११ 'ए। गमाः सर्वार्थसिद्धदेवानां भान्ति । एषां जघ यस्मिते (भावात् मध्यमं गमय
नं भवति, तथा उत्कृष्टस्थितेरभावाव अन्तिममपि गमत्रयं न भवति, एतदेव दर्श यति-'एए चेत्र' इत्यादि, 'एए चेव तिन्नि गमगा' एते-उपरिदर्शिता एव त्रयो गमकाः आधा एव त्रयो गमा भवन्ति, 'सेप्ता न भणति' शेषाः-तद्भिनाः-चतुर्थपश्चमपष्ठसप्तमाष्टमनवमगमका न भण्यन्ते सर्वार्थसिद्धदेवानां जघन्पस्थितेरभावान्मध्यम गमत्रयं न भवति तथोत्कृष्टस्थितेरभावात् चरपमपि गमत्रर्य न भवति इति । 'से भंते ! सेवं भंते । ति' तदेव भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त ! मनुष्येषु ___ यहां प्रफरान्तरसे नौ गमक नहीं होते हैं किन्तु आदि के ३ गम होते हैं। क्योंकि इनमें जघन्य स्थिति का अभाव होता है अतः मध्यम तीन गम नहीं होते हैं। तथा उत्कृष्ट स्थिति का भी अभाव रहता है अतः अन्त के भो ३ गम नहीं होते हैं । यही बात-'एए चेव 'तिमि गमगा' इस सूत्रपाठ द्वारा सूत्रकार ने प्रदर्शित की है-इस प्रकार यहां आदि के ही तीन गम हुए हैं 'सेसा न भणति' शेष-अन्तके
और मध्य के ३३ गम नहीं हुए हैं। तात्पर्य इस कथन को यही है कि सर्वार्थसिद्ध के देव अजघन्य अनुत्कृष्ट स्थिति वाले होते हैं -इस कारण जघन्य स्थिति के अमाव में मध्य के ३ गम और उत्कृष्ट स्थिति के अभाव में अन्त के ३ गम वहां नहीं हुए हैं। 'सेवं अंते । सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! मनुष्यगति में जो आप देवानुप्रिय ने जीवों के उत्पाद * અહિયાં અન્યત્ર બતાવ્યા પ્રમાણેના નવ ગમે થતા નથી. પરંતુ પહેલાના ત્રણ જ ગમ થાય છે કેમકે આમાં જઘન્ય સ્થિતિને 'અભાવ હોય छे. रथी मध्यन व गम। यता नथी. मे पात 'एए चेव तिन्नि गमगा' આ સૂત્રપાઠથી સૂત્રકારે પ્રગટ કરેલ છે. આ રીતે અહિયાં પ્રથમના જ ત્રણ गा. थाय छे. 'सेसा न भण्णंति' शेष-मन्तन मन मध्यन 3-3. ગમે એટલે કે છ ગમે થતા નથી, આ કથનનું તાત્પર્ય એજ છે કે-સર્વાર્થ સિદ્ધના દેવે અજઘન્ય અનુત્કૃષ્ટ સ્થિતિવાળા હોય છે. આ કારણે જઘન્ય સ્થિતિના અભાવમાં મધ્યના ત્રણ ગમે અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિના અભાવમાં छेदा अभी त्यो यता नथी. .
'सेवं भंते ! सेवं भते । ति मगवन् मनुष्य गतिमा यावीसभा રહેલા જીવોના ઉત્પાત વિગેરે-વિષયમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે પ્રમાણે કહ્યું છે,