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भगवतीसूत्रे
जघन्यस्थितिकएवेनोत्पत्तौ अवशस्ता - अशुमा एव सवन्ति 'तइयगमए पसस्था भवति' तृतीयगमके प्रशस्ताः शुभा अध्यवसाया भवति 'सेसं तं चैव निरवसेसं' शेषम् - अध्यवसायातिरिक्तं सर्वमपि पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकमकरणोक्तमेन भवतीत्यवसेय मिति ९ ।
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अकायिकादिभ्यश्च मनुष्योत्पादमतिदेशेनाड- 'जड़ आक्काइएहितो' यदि अष्कायिकेभ्य उत्भ्द्यन्ते हे भदन्त । यदि मनुष्या अफायिकेभ्य आगत्य समुस्वद्यन्ते तदा-कियत्कालस्थितिकेषु मनुष्येत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । उत्तरं पूर्वप्रकअध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं । 'बितियगमए अपसस्था तथा मध्यम के features में जघन्य स्थिति वाले पृथिवीकाधिक की जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पत्ति होने से उसके अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं । 'तम पसत्था भवंति एवं तृतीय गमक में जवन्यस्थिति वाले पृथिवीकाधिक की उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पत्ति होने से उसके अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं । 'सेस तं चैव निरवसेस' इस प्रकार अध्यवसाय के अतिरिक्त और सब द्वारों का कथन पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योकि के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही है ९।
अब सूत्रकार अकाधिक आदि से मनुष्य के उत्पाद का कथन अतिदेश से करते हैं 'जह आरकाहरहितो' इसमें गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है - हे भदन्त ! यदि अष्कायिकों से आकर के जीव मनुष्यों में उत्पन्न होता है तो वह कितने काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है ? इस प्रश्न के उत्तर पूर्व प्रकरण के अतिदेश से देते हुए अप्रशस्त अध्यवसाय होय छे. 'वितियगमए अपवत्था' तथा मध्यना जीन ગમમાં જઘન્ય સ્થિતિવાળા પૃથ્વીકાયકની જઘન્ય સ્થિતિવાળા મનુષ્યેામાં उत्पत्ति थवाधी तेने अप्रशस्त अध्यवसाय होय हे 'तइयगमए पत्था भवति' श्रील गमभां ४धन्य स्थितिवाजा पृथ्विायिनी उत्कृष्ट स्थितिवाजा अनुण्याभां उत्पत्ति थवाथी तेने प्रशस्त अध्यवसाय होय छे, 'सेसं तं चैव निरवसेस' | रीते अध्यवसाय शिवायतु मील तमाम द्वारा सौंधी धन પચેન્દ્રિય તિય ચર્ચાનિકના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. પ્રા
હવે સૂત્રકાર અષ્ઠાયિક વિગેરેમાંથી મનુષ્યના ઉત્પાતનુ યન અતિहेशथी ४रे छे. 'जन आउनका इरहियो' मा सूत्रांशथी गौतमस्वाभीको प्रभुने એવું પૂછ્યું છે કે—હે ભગવન જે અાયિકામાંથી આવીને જીવ મનુષ્યેામાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે તે કેટલા કાળની સ્થિતિવાળા મનુષ્યેામાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ પહેલાના પ્રકરણના અતિદેશથી કહે છે કે—