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________________ प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० सू०६ देवेभ्यः पतिर्यग्योनिकेषूत्पात: ३४३ केवल मेतावदेव वैलक्षण्यं पूर्वापेक्षया यत् तदर्शयति-'नवरं', इत्यादिना । 'नवर. ओगाहणा जहाओगाहणसंठाणे नवरम्-केवलं शरीरावगाहना अवगाहनासंस्थाने प्रज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे देवानाम् 'इत्थमवगाहना कथिता । इयं मवधारणीय- . शरीरमाश्रित्य प्रोक्ता, तथाहि-'भवणवाणजोइसोहम्मीसाणे सत्तहुंति रयणीयो। एक केक्कहाणिसे से दुदुगे य दुगे चउक्के य ॥१|| . . . . . . . । भवनपतिवानमन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशानेषु सप्त भान्ति रत्नयः, एककरत्नि हानि:-शेषेषु द्वि के द्विके च चतुष्के चेति। । भवनपति-वानव्यन्तर ज्योतिष्क-सौधर्मेशानदेवानां भवधारणीयाऽवगाहना सप्तरत्निप्रमाणा, शेषेषु-द्वि के सनत्कुमारमाहेन्द्ररूपे 'दुगे' द्विके-ब्रह्मलोक लान्तकरूपे, 'दुगे' द्विके-महाशुक रहस्राररूपे, तथा-'चउक्के' चतुष्के-मानतपाणता-ऽऽरणाऽच्युतरूपे ८ कै करनि हान्याऽवगाहनाऽवगन्तव्या, तेन आनतादि कहना चाहिये। परन्तु पूर्व की अपेक्षा जो विलक्षणता है वह 'नवरं ओगाहणासंठाणे' अवगाहनो की अपेक्षा से है। अर्थात् अवगाहना संस्थानपद में जो अवगाहना कही गई है वही अवगाहना इनमें है यह अवगाहना संस्थानपद प्रज्ञापना सूत्र का २१ वां पद है। उसमें यह अवगाहना इम प्रकार से कही गई है-'भवणवागजोइसोहम्मीसाणे सत्तहति रयणीओ।. एकशेक्क हाणि सेसे दुद्गे य दुगे चउको य॥१॥ -भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ईशान इन देवों के भवधारणीय अवगाहना सात रत्ति प्रमाण है। तथा सनत्कुमार और माहेन्द्र में ब्रह्मलोक और लान्तक में, महाशुक्र और सहस्रार में, एवं आनत, प्राणत, आरण और अच्युन इनमें एक एक रस्नि,कम करने से वहां वहां की अवगाहना होती है। इस प्रकार सनत्कुमार ait'थन ४२त २ प है, 'नवर ओगाहणा जहा मोगाहणासंठीणे' અવગાહના સ બ ધમાં છે, અર્થાતુ-અવગાડના–સંસ્થન પદમાં જે અવગાહના કહી છે એજ અગાહના અહિયાં પણ કહી છે. આ અવગાહના સંસ્થાન * પદ પ્રજ્ઞાપના સૂત્રનું ૨૧ એકવીસમું પદ છે. તેમાં આ અવગાહના આ अभाये ४४ी छे. 'भवणवाणजोइसोहम्मीसाणे सत्त हुँति रयणीओ एक्केकहाणि सेसे दुदुगे य दुगे चउके य' ॥१॥ सपनपति, पान०यन्त२, न्याति, अने सीधम' તથા ઈશાન આ દેવોના ભવ–ધારણેય અવગાહના સાતત્નિ પ્રમાણુની છે તથા સનકુમાર અને મહેન્દ્ર દેવલોકમાં, બ્રહ્મલેક અને લાન્તકમાં મહાશુક્ર અને સહસારમાં અને આનત, પ્રાકૃત, આરણ અને મ્યુત આમાં એ એક રનિ કમ કરવાથી ત્યાં ત્યાંની અવગાહના થાય છે આ રીતે સ્તનત
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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