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________________ भंगवतीसूत्रे 'णो मणजोगी णो वयजोगी' नो मनोयोगिनो नो वाग्योगिनो वाङमनोभ्यां विरहिता इत्यर्थः पृथिव्याकेन्द्रियजीवानां वाङ्मनसोरभावात् किन्तु 'कायजोगी' काययोगिनः केवलं शरीरात्मक एव योगो भवति पृथिवीकायिकानामिति ९। उपयोगद्वारे-'उबजोगो दुविहो वि' उपयोगो द्विविधोऽपि साकारोपयोगोऽपि भवति अनाकारोपयोगोऽपि पृथिवीकायिकानां भवतीति१० । 'चचारि सन्नाओ' चतस्रः संज्ञाः आहारभयमैथुनपरिग्रहाख्याश्चतस्रः संज्ञा भवन्ति पृथिवीकायिकजीवानामिति ११ । कषायद्वारे 'चत्तारि कसाया' चत्वारः कषायाः, क्रोधमानमायालोमाख्या श्चत्वारः कषायाः पृथिवीकायिकजीवानामिति भावः १२ । इन्द्रियद्वारे-'एगे फासिदिए पत्नत्ते' एकं स्पर्शनेन्द्रियम् प्रज्ञप्तम् इन्द्रियद्वारे एकमेव स्पर्शनेन्द्रियं भवति एकेन्द्रियस्वात् १३ । 'तिन्नि समुग्धाया' या समुद्घाताः वेदनाकषायमारणान्तिका स्त्रयः समुद्घाताः पृथिवीकायिक जीवानां भवन्तीति भावः १४ । वेदनाद्वारे-'वेषणा दुविहा' वेदना द्विविधा सुखमें णो मणजोगी का वययोगी ये पृथिवीकायिक जीव न मनायोग वाले होते हैं और न बचनयोग वाले होते हैं-किंतु 'कायजोगी' काययोगवाले ही होते हैं । अर्थात् इनके काययोग ही एक योग होता है। उपयोग द्वार में इनके साकार उपयोग भी होता है और अनाकार उपयोग भी होता है, 'चत्तारि सन्नाओ' आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ये चार संज्ञाएं इन पृथिवीकायिक जीवों के होती है। कषाय द्वार में 'चत्तारि कसाया' क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषायें इनके होती हैं। इन्द्रिय द्वार में 'एगे फालिदिए पन्नत्ते' इनके एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है। तिन्नि सानुग्धाया' इनके वेदना, कषाय और मारणान्तिक ऐसे तीन समुद्घात होते हैं । वेदनाद्वार में-'वेयणा આ પૃવીકાયિક છે મનેગવાળા હોતા નથી. તથા વચનોગવાળા पाता नयी ५२'तु 'कायजोगी' ४५ याममा १ डाय छे. अर्थात તેઓને કાયયોગ જ એક રોગ હોય છે. ઉપગ દ્વારમાં–તેઓને સાકાર भने माना।२ मे २॥ उपयोग डाय छे. 'चत्तारि सन्नाओं' मा પૃથ્વીકાયિક જીને આહાર, ભય, મિથુન, અને પરિગ્રહ એ ચાર સંજ્ઞાઓ હોય છે. पायवारभा-'चत्तारि कसाया' तमान औष, भान, भाया भने बाल, से पार पाया जाय छे. ४न्द्रिय द्वारमा 'एगे फासिदिए पण्णत्ते' तेमाने २५ नन्द्रिय स मे न्द्रिय य छ. तिन्नि प्रमुग्घाया' तेमाने વેદના, કષાય, અને મારણતિક એ ત્રણ સમુદ્ ઘાતે હોય છે. વેદના દ્વારમાં
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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