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प्रमेयर्यान्द्रका टीका श०२४ उ.२० स्टू०५ मनुष्येभ्य प.तिरश्वामुत्पातः ३०७ स्थितिकेषु पञ्चेन्द्रियत्तिर्यग्योनिकेपु 'उकोसेणं तिपलियोधमटिइएसु उपवज्जेज्जा' उत्कर्पण त्रिपल्योपमस्थितिकेषु पञ्चेन्द्रितिर्यग्योनिकेषु उत्पग्रेत इति उत्पाद द्वारम् १ । परिमाणद्वारे प्रश्नयन्नाह-'ते भंते ! जीवा एगसमएम केवड्या उववज्जति' ते खल्लु भदन्त ! जीवा एक समयेन कियन्त उत्पधन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह-लद्धी से' इत्यादि । 'लदी से जहा एयरसेव सन्निमणुस्सस्स पुढवी. काइएम् उपवज्जमाणस्स पढमगमए जाब भवादेसोति' लब्धि स्तस्य यथा एतस्यैव संझिमनुष्यस्य पृथिवीकायिकेपु उत्पद्यमानस्य प्रथमगमके यावत् भवादेश इति, लब्धिः-परिमाणादि प्राप्तिः तस्य संज्ञि मनुष्यस्य यथा एतस्पैव संज्ञिमनुष्यस्य पृथिवीकायिकेषु समुत्पद्यमानस्य प्रथमगमके कथिता तथैवेडापि सर्वे बोद्धव्यम् एक अन्तमुहर्त की स्थितिधाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चों में उत्पन्न होता है
और 'उकोसेणं' उत्कृष्ट ले 'तिपलिओवषष्टिइएस उवधज्जेज्जा' तीन पल्योपम की स्थितिवाले पञ्चन्द्रियतियों में उत्पन्न होना है। इस प्रकार से यह उत्पाद बार को लेकर कथन किया' अब परिमाण द्वार को लेकर कथन इस प्रकार से है-इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'तेणं: भंते! जीवा एमएण केवया उपवज्जत्ति' हे भदन्त वे संज्ञी मनुष्य जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'लद्धी से जहा एयस्लेव सन्नि मणुस्सस्स पुढवीशाइएसु उवधज्जमा. णस्स पढमगमए जाच अवासोति' हे गौतम ! पृथिवीकायिकों में उत्पन होने योग्य संही मनुष्य की प्रथम नामक में कही गई वक्तव्यता यहाँ यावत् भवादेश तक कह लेनी चाहिये । वह वक्तव्यता इस प्रकार से है 'गोयमा ! गीतम! ते 'जहन्नेणं अतोमुहुत्तट्टिइएसु' धन्यथी मत. भुइतनी स्थितियाजा सशी ५येन्द्रिय तिययोमा उत्पन्न थाय छे. मन 'उको. सेणं थी 'तिपलिओवमट्रिइएसु उववज्जेज्जा' र पक्ष्यापमनी स्थितिवाणा સંસી પચન્દ્રિયતિર્યામાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે આ ઉત્પાત દ્વારના समयमा ४थन यु छ. . હવે પરિમાણુ દ્વારા સંબંધમાં કથન કરવામાં આવે છે. આ વિષયમાં गौतम स्वामी प्रसुन मे पूछयु छ -'ते णं भवे ! जीवा एग समएणं केवइया उववज्जति' मग त सभी मनुष्य के समयमा
पन्न थाय छ १ मा प्रशन उत्तरमा प्रभु ४९ छ -'लद्धी से नहा एयस्सेव सन्निमणुस्सस्स पुढवीकाइएसु उववज्जमाणस्स पढमगमए जाव भवादेस्रोत्ति'
ગૌતમ! પૃથ્વીકાચિકેમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય સંજ્ઞી મનુષ્ય સંબંધી પહેલા ગામમાં કહેલ કથન અહિયાં યાવત્ ભવાદેશ સુધી કહેવું જોઈએ. તે