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________________ प्रमेयमन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० सू०५ मनुष्येभ्यः पतिरश्चामुत्पातः ३०३ सेणं पुचकोडी आउएमु उवज्जेज्जा' उत्कर्पण पूर्वकोव्यायुष्केषु पञ्चेन्द्रियतिर्य ज्योनिकेषु उत्पद्येत इति । 'लद्धी से तिमु वि गमएमु जहेव पुढवीकाइएमु उववज्ज माणस्स' लब्धिः परिमाणादिका तस्या संझिमनुष्यस्य विष्वपि गमकेषु यतो नवानांगमानांमध्ये आया एव त्रयो गमाः प्रथमद्वितीय तृतीय रूपा इह सम्भवन्ति । जघन्यतोऽपि उत्कर्ष तोऽपि चान्तर्मुहूर्नस्थितिकत्वेन एकस्थितिकत्वात् तस्येति, यथैव पृथिवीकायिकेषु उत्पद्यमानस्यासंज्ञिमनुष्यस्याधगमत्रये या वक्तव्यता कथिवा सैव वक्तव्यता अत्रापि पश्चेन्द्रिर्यातरश्चि समुत्पद्यमानस्यासंज्ञिमनुष्यस्य यह जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त की स्थिति बाले पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है और 'उक्कोसेणं पुव्वकोड़ी आउएस्सु उपधज्जेज्जा' खस्कृष्ट से एक पूर्वकोटि की आयुवाले पञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है 'लद्धि से तिसु वि गमएस्सु जहेच पुढवीकाइएस्सु उववजमा. रस' पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य असंज्ञी मनुष्य की पहिले के तीनों गमकों में जो वक्तव्यता कही गई है वही वक्तव्यता यहां पर भी प्रथम के तीनों गमकों मे कह लेनी चाहिये। क्योंकि नौ गमों में से यहां तीन ही गम-प्रथम, द्वितीय और तृतीय ऐसे तीन गम ही संभावित होते हैं। इसका कारण ऐसा हैं कि यह जघन्य से और उत्कृष्ट से दोनों प्रकार से भी अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाला होने से एक ही स्थितिवाला है। जिस प्रकार पृथिवीकायिकों में उत्पद्यमान असंज्ञी मनुष्यको आदिके तीन गमों में जो वक्तव्यता कही है वही वक्तव्यता यहां पश्चेन्द्रियतियज्योनिकमें उत्पद्यमान असंज्ञी मनुष्य की भी कहनी G4-1 थाय छे. भने 'उकोसेणं पुवकोडो आउएसु उबवज्जेजा' या या પૂર્વકેટિની આયુષ્યવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિય ચ યોનિમાં ઉત્પન્ન થાય છે, 'लद्धी से तिसु वि गमएसु जहेव पुढवीकाइएसु डबवज्जमाणस्स' पृथ्वी थिકેમાં ઉત્પન્ન થવાને યોગ્ય અસંજ્ઞી મનુષ્યનું પહેલાના ત્રણ ગમે માં જે કથન કર્યું છે. એજ કથન અહિયાં પણ આગલા ત્રણ ગામમાં એટલે કે પહેલા, બીજા, અને ત્રીજા ગામમાં કહેવું જોઈએ કેમકે નવ ગમો પિકી અહિયાં એ ત્રણ ગમ જ સંભવે છે તેનું કારણ એ છે કે-આ જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ બે પ્રકારથી એક જ સ્થિતિ વાળા હોય છે. જેવી રીતે પ્રથિવીકાયિકમાં ઉદ્યમાન અસંજ્ઞીમનુષ્યને આદિના ત્રણ ગમોમાં જે કથન કર્યું છે એજ કથન અહિયાં પંચેન્દ્રિયતિયાનિકેમ ઉ૫દ્યમાન અસંસી - - ...... .
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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