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________________ मैयद्रिका का श०२४ उ. १२ ०१ पृथ्वीकायिकानामुत्पातनिरूपणम् ११ पर्याप्तवादरपृथिवीकायिके के न्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्प आगत्योत्पद्यन्ते तथा:'अवज्जन्तवारपुढची कायए गिद्दियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवज्जंति' अपर्याप्तबादरपृथिवीकायिकै केन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्योऽपि आगत्य समुत्पद्यन्ते, हे गौतम ! उभाभ्यां पर्याप्तापर्याप्ताभ्यामपि आगत्य पृथिवीकायिकतया समुत्पन्ते इति भावः । ' पुढवीकारणं भंते ।' पृथिवीकायिकः खल्ल भदन्त - ! 'जे भविए' यो भव्यः - समुत्पत्तियोग्यः 'पुढवीकाइएस' उनवज्जित्तए' पृथिवीकायिकेषूत्पत्तुम् ' से णं भंते' सः - पृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! ' के वइयकाल - इस उवज्जेज्जा' कियटकाल स्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषूत्पद्यते हे मदन्त ! यः पृथिवीकायिको जीवः पृथिवीकायिकेषु समुत्पत्तियोग्यो विद्यते स कियत्कालस्थितिक पृथिवीकायिकेषु समुत्पद्यते इति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम | 'जम्नेणं अंतो मुहुत्तडिइएस' जघन्येन अन्तर्मुहुर्त्तस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु समुत्पद्यते 'उक्को सेणं बावीसवास सहस्सट्ठिएस उववज्जेज्जा' पजत्तवापर पुढवीकाय एगिंदितिरिक्ख जोणि एहिंतो उववज्र्ज्जति' हे गौतम ! वे पर्याप्त बादर पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में से आकर के भी उत्पन्न होते हैं और 'अपज्जन्त्तबायर पुढवीकाइयएगिंदिय तिरिक्ख०' अपर्याप्त बादर पृथिवीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में से आकर के भी उत्पन्न होते हैं । अब गौतम पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'पुढचीकाइए णं भंते ! जे भविए पुढवीकाइएल उववज्जंति' हे भदन्त ! जो पृथिवीकायिक पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य है। वह 'hareकालट्ठिएसु उबवज्जंति' कितने काल की स्थितिवाले पृथिवी कायिकों में उत्पन्न होता है ? इस गौतम के प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं- 'गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहतहिए, उक्की. सेर्ण बावीसवास सहस्त्रहिए उववज्जंति' हे गौतम! वह पृथिवीकाएहि तो उववज्जंति' डे गोतम ! तेसो पर्याप्त महर पृथ्वीमयि मेहेन्द्रिय तिर्यथ योनिअमांथी भावीने पशु उत्पन्न थाय छे भने 'अपज्जत्तबायरपुढवीकाइयएगि 'दियतिरिक्ख०' अपर्याप्त महर पृथ्वी अयि मेहेन्द्रिय तिर्यय ચેનિકામાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થય છે. હવે ગૌતમસ્વામી ફરીથી પ્રભુને " छे छे ! - 'पुढवीकाइए णं भंते ! जे भविए पुढवीकाइपसु उववज्जति' हे लगवन् थे पृथ्वीायिक पृथ्वीश्रयिमेभां उत्पन्न थवाने योग्य छे, ते 'केवइयकालट्टिइए उत्रवज्जति' टला अजनी स्थितिवाजा पृथ्वीयामां उत्पन्न याय छे ? गौतमस्वाभीना या प्रश्नना उत्तरमा अलु छे - 'गोयमा । जहन्नेग तोमुत्र उक्कोसेणं बावीसवासस इस्सट्ठिएसु उववज्जंति' डे गौतम । ते
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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