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________________ २९० भगवतीसूत्र तृतीय मेsपि अन्यत्सर्वमुत्पादादिकं प्रथमगमवदेव किन्तु परिणामविषये यद् चैलक्षण्यं तदेव दर्शयति- 'नवरं' इत्यादिना, 'नवरं परिमाणं जहन्नेणं एको वा दोवा विनिवा' नवर - केवल परिमाणं जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा 'उक्को - सेण संखेज्जा उत्रवज्जेति' उत्कर्षेण संख्येया उत्पद्यन्ते परिमाणं जघन्योत्कृष्टाभ्यामेकादिसंख्यातान्तं भवति एतदेव वैलक्षण्यम् । तथा 'ओगाहणा जहम्नेणं अंगुलस असंखेज्जइभागं शरीरावगाहना जघन्येनाङ्गुलस्यासंख्येयभागम् 'उको सेणं जोयणसहस्से' उत्कर्षेण योजनसहस्रम् 'सेसं तं चेत्र' शेष - परिमाणा पोप की स्थिति वाले पश्चेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है । इत्यादि रूप से पूर्वोक्त वक्तव्यता ही सघ यहाँ पर कह लेनी चाहिये । तात्पर्य इस कथन का यही है कि इस तृतीय गम में भी और सब उत्पाद आदि का कथन प्रथम गम के जैसा ही है । किन्तु परिमाण के विषय में जो प्रथम गम की अपेक्षा से भिन्नता है वह 'नवरं परिमाणं जहन्नेणं एको वा दो वानिया' इस सूत्रपाठ द्वारा सूत्रकार ने इस प्रकार से प्रकट की है कि यहां इस तृतीय गम में परिमाण की अपेक्षा जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन जीव एक समय में उत्पन्न होते हैं और 'सक्को सेणं संखेज्जा उववज्जलि' उत्कृष्ट से संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं । इस तृतीय गम में प्रथम गम की वक्तव्यता से यह भिन्नता है । तथा - दूसरी अवगाहना की अपेक्षा से भी भिन्नता हैं जो प्रथम गम में कही जा चुकी है जैसे- 'ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्को सेणं जोयणसहस्सं' इस सूत्रपाठ द्वारा इस प्रकार से प्रकट की गई પદ્મની સ્થિતિવાળા સ'ની પચેન્દ્રિયતિય ચામાં ઉત્પન્ન થાય છે. ઇત્યાદિ રૂપથી પહેલા ગમમાં કહેલ જ સઘળુ* કથન અહિયાં સમજવુ જોઇએ. કહેવાનું તાત્પય એ છે કે—આ ત્રીજા ગમમાં પણુ ઉત્પાત વિગેરેતુ તમામ કથન પહેલા ગમમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. પર’તુ પરિમાણુના સબંધમાં थडेला गभ ठरतां ? हा पशु छे. ते 'नवरं परिमाणं जहन्नेणं एक्का वा देश वा तिन्नि वा' मा सूत्रपाठथी सूत्रहारे भा राते अगर रेस - मडियां मा ત્રીજા ગમમાં પરિમાણની અપેક્ષાથી જઘન્યથી એક અથવા એ અથવા ત્રણ लव मे सभयभां उत्पन्न थाय छे, भने 'उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जति - ષ્ટથી સખ્યાત જીવા ઉત્પન્ન થાય છે. આ ત્રીજા ગમમાં પહેલા ગમ કરતાં मा नुहायालु थे, तथा अवगाहनाना सौंअधिभां पर नुहायागु हे ? 'ओगाहूणा जहणेण अंगुलस्स असंखेज्जडुभागं, उकोसेणं जायणसहस्स' या सूत्रपाई
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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