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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० सू०३ तिर्यग्भ्यः ति जीवोत्पत्यादिकम् २७७, क्षण्यं तदर्शयति 'नवरं इत्यादि. । 'नवरं कालादे सेणं जहन्नेणं पुनकोडी, अंतो महत्तमाहिया नवरम्-केवलं कालादेशेन-कालापेक्षया जघन्येन पूर्वकोटि रन्तर मुंहृताभ्यधिका, उक्कोसेण चनारि पुनकोडोओ चहि अंनोमुहुत्तेहि अमहियाओ' उत्कर्षेण चालः पूर्वकोट्यश्चतुर्मिरन्तर्मुहूरभ्भधिकाः 'एवइयं एतावन्तं कालं, सेवेत तथा एतावन्तं कालं गमनागमने कुर्यादित्यष्टो गमा। सोचेक, उक्कोसकालट्टिइएसु उववन्नो' स एवासंज्ञिपञ्चन्द्रियतिर्यरयोनिक एव उत्कृष्ट काल. स्थितिक, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पद्यते तदा-'जहन्नेण, पलिओवमस्स, असं , आठवां गम सातवें गम के ही जैसा है। परन्तु जिस अंश को लेकर इस गम में उस गम की अपेक्षा भिन्नता है वह 'नवरं कालादेसेणं जह न्नेणं पुच्चकोडी अंतोमुहुत्तभहिया, उक्को सेणं चत्तारि पुवकोडीओ. चाहिं अंतोमुहुत्तहिं अमहियाओ' इस. सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की.गई. है। इसके द्वारा यह समझाया गया है कि-यहाँ कायसंवेध काल की. अपेक्षा जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त अधिक पूर्व कोटि का है और उत्कृष्ट से चार अन्तमुहर्त अधिक चार पूर्वकोटि का है। 'एवइयं कालं.' इस प्रकार से वह जीव इतने काल तक दोनों गतियों का सेवन करता है और इतने ही काल तक वह उन दोनों गतियों में गमनागमन करता. है। ऐसा यह आठवां गम है। . नौवां गम- इस प्रकार से हैं''सोचेव उक्कोसकालहिहए-उववन्नो' जब यह असंज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों જોઈએ. અર્થાત્ આઠમે ગમ સાનમાં ગમ પ્રમાણે જ છે. પરંતુ જે અંશમાં सातभा गंभ ४२il BHI गममा पा छे, ते सूत्रा२ 'नवरं कालादेसें] जहन्नेण पुवकोडी अतोमुहत्तमभहिया, उकोसेणं चत्तारि पुत्वकोडीओ चाहिं संतोमुहुत्तेहिं अमहियाओ' in सूत्रा: ३२प्रगट ४२ छ. मा सूत्रपाઠથી એ સમઝાવ્યું છે કે અહિયા કાયસંવેધ કાળની અપેક્ષાથી જઘન્યથી. એક અંતર્મુહૂર્ત અધિક પૂર્વકેટિનું છે, અને ઉકૃષ્ટથી ચાર અંતર્મુહૂર્ત अधिः योर पूटिने छे. 'एवइयं कालं.' मा शत ते मा સુધી બને ગતિનું સેવન કરે છે, અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ મને गतियोमा गमनागमन रे छ, मे शतमा मामे ही छे..' व नवमा मनु ४थन ४२वामा मा छे.-'सो चेव उक्कासकालट्रिइएसु, उववन्नो' न्यारे भE PAAPी पथेन्द्रिय तिय ययानिवाणी 4 Gr
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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