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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१३ सू०१ अपकाये पृथिव्यादिजीवोत्पत्तिनि० १७३ तुम्, 'से णं भंते' स खलु भदन्त ! स पृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! जीवः 'केवइयकालडिएस उपवज्जेज्जा' कियत्काल स्थिति केषु अष्कायिकेपूत्पद्येतेति प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'जहन्नेणं अंतोमुद्रहिप' जघन्येनान्तर्मुहूर्त्त स्थितिकेषु, 'उक्को सेणं सत्तवास सदस्सडिएस उववज्जेज्जा' उत्कर्षेण सप्तवर्षसहस्रस्थितिकेषु अकायि के पूत्पद्येतेति १ । एवं पुढवीकाइयउद्देसन्स रिसो भाणियन्त्रो' एवं पृथिवीकायिकोदेशकसदृशो भणितव्यः पृथिवीकायिकमकरणवदेव सर्वे वक्तव्यमिति । तदिदमत्र बोध्यम्हे भदन्त ! ते अकायिका जीवा एकसमयेन कियन्त उत्पद्यन्ते हे गौतम! मतिसमयमविरहिता अमंख्येया उत्पद्यन्ते २ । सेवार्तसंहननवन्तः ३, शरीरावगाहना
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reatfunt में उत्पन्न होने के योग्य है । 'से णं भंते । केवइयकाल० ऐसा वह पृथिवीकायिक जीव कितने काल की आयु वाले अष्कायिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! जहन्नेणं अंतोन्तट्ठिए उकोसेणं सत्तवाससहरुस ० ' हे गौतम | वह पृथिवी कायिक जीव जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त की स्थितिवाले अष्कायिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से सात हजार वर्ष की स्थिति वाले reatfunt में पन्न होता है ? 'एवं पुढवीकाय उद्देगसरिसो 'भाforest' इस प्रकार पृथिवीकायिक के प्रकरण के जैसा ही शेष ओर सब प्रकरण यहां कह लेना चाहिए। जैसे - हे भदन्त ! वे अष्कायिक जीव एक समय में कितने उम्पन्न होते हैं ? इस प्रकार के परिमाण सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में वे प्रति समय अविच्छिन्न रूप से असंख्यात उत्पन्न होते हैं, ऐसा प्रभु का उत्तर रूप कथन जानना चाहिए
मां उत्पन्न युवाने योग्य छे, 'से ण भंते केवइयकाल' मेव। ते पृथ्वी अ યિક જીવ કેટલા કાળની આયુવાળા અાપ્રિયકામાં ઉત્પન્ન થાય છે? આ अश्नना उत्तरमा अनु छे - 'गोयमा ! हे गौतम! 'जहण्णेणं अंतोमुहुत्त इिए उक्केासेणं सत्त वासखहरल० हे गौतम । ते पृथ्वी ४०
ન્યથી એક અંતર્મુહૂતની સ્થિતિવાળા અાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત હજાર વર્ષની સ્થિતિવાળા અપ્રકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે. एवं पुढवीकाइय उद्देसगस रिसो भाणियन्त्रो' या रीते पृथ्वी अयिउना अ४२शुभां કહ્યા પ્રમાણે બાકીનું તમામ કથન અહિયાં સમજવુ' જોઇએ જેમકે-હે ભગ વન્ કાયિક જીવ એક સમયમાં કેટલા ઉત્પન્ન થાય છે? આ રીતના પરિમાણુ સંબંધી પ્રશ્નના ઉત્તરમાં તેઓ પ્રતિસમય અવિચ્છિન્ન રૂપથી સખ્યાત ઉત્પન્ન થાય છે. એ પ્રમાણે પ્રભુએ કહ્યુ છે. તથા સહનન દ્વાર