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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ ३.१२ सू०६ नागकुमारेभ्यः समुत्पातादिनि० १५.० एव अवयवे समुदायोपचारादष्टभागपल्योपमम् इदं च तारक देव देवीराश्रित्य उक्तम् तेषामेव एवाशायुष्कत्वादिति । 'उकोसेणं पलिओवमं वाससय सदस्स अमहिये' उत्कर्षेण परपोपमं वर्षशतसहस्राभ्यधिकम् एकलक्षवर्षाधिकमेकं परयोपममित्यर्थः तथा च जघन्यतः पल्पोपमस्याष्टमो भागः उत्कृष्टत एकलक्षवर्षाधिकपल्यो. पमात्मिका स्थितिर्भवति । इदं च चन्द्रविमानदेवानधिकृत्य प्रोक्तमिति । ' एवं अणुबंध वि' एवमनुबन्धोऽपि एवम् स्थितिवदेव अनुबन्धोऽपि जघन्यतः पल्योपमस्याष्टमो भागः उत्कृष्टतो लक्षवर्षाधिकेकपल्योपमरूपो भवतीत्यर्थः । काय संवेधस्तु भवापेक्षया भवद्वयग्रहणात्मकः, 'कालादेसेणं जहन्नेणं अट्ठभागपलिओ मं अंतमुत्तममहियं कालादेशेन काला पेक्षा जघन्यतोऽष्टभागपल्योपमः अन्तर्मुहूहै, सूत्र में जो 'अट्ठभागपलिओ मं' ऐसा कहा गया है वह अवयव में समुदाय के उपचार से कहा गया है सो ऐसा यह कथन तारक देव की देवियों को आश्रित करके कहा है, क्यों कि वे ही ऐसी अयुवाली होती हैं। 'उक्कोसेणं पलिभोवमं वातसय सहस्स अमहियं' तथा उत्कृष्ट से स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्पोप की है, इस प्रकार की उत्कृष्ट स्थिति का कथन चन्द्रविमान के देवों को लेकर किया गया है, 'एवं अणुबंधो वि' स्थिति के अनुसार अनुबन्ध भी जघसे एक पल्य के आठवें भाग प्रमाण है और उत्कृष्ट से एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योक्म प्रमाण है, काय संवेध यहां भव की अपेक्षा दो भवों को ग्रहण करने रूप है, और काल की अपेक्षा वह 'जहन्नेणं अट्टभागपलिओवमं अंनोमुत्तमन्महियं' जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त्त सूत्रों ने 'अट्ठभागपलिओवमं' मेवु' 'डेवामां भाव्यु छे. ते अवयवभां सभुદાયના ઉપચારથી કહેલ છે. તેા આવી રીતનું આ કથન તારક દેવીની દેવી. ચાને ઉદ્દેશીને કહેવામાં આવેલ છે. કેમકે તેએજ આ પ્રકારના આયુવાનીચે डाय छे. 'उक्कोसेणं पलिओम' वाससय सहस्स अमहिय' तथा उत्कृष्टथी स्थिति એક લાખ વ અધિક એક પયેાપમની છે. આ રીતની ઉંત્કૃષ્ટ સ્થિતિનુ ¥थन यद्रविभानना हेवाने उद्देशाने हेवामां आवे छे. 'एवं अणुवधो वि' સ્થિતિના કથન પ્રમાણે અનુબંધ પણ જઘન્યથી એક પુણ્યના આઠમા ભાગ પ્રમાણુના છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી એક લાખ વર્ષે અધિક એક પલ્યાપમ પ્રમાણને છે. કાયસ વેધ અહિયાં ભત્રની અપેક્ષાથી એ લવને ગ્રહણ કરવા રૂપ કહેલ छे. मने अपनी अपेक्षाथी ते 'जहन्तेणं अट्ठभागपलि भोवम अंतोमुहुत्तमम्भहिय' જધન્યથી એક અતર્મુહૂત અધિક પુણ્યના આઠમા ભાગ પ્રમાણુના છે, અને
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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