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________________ १५४ भगवती सूत्रे मन् अनुरकुमारप्रकरणे जघन्यतः स्थितिर्दशवर्षसहस्रात्मिका उत्कृष्टतः साविकसागरोपमा इह तु स्थितिर्जयन्यतो दशवर्षसहस्रात्मिका उत्कृष्टतः परयोपमे त्येतावानेव भेद उभयोः प्रकरणयोरिति । 'सेसं तदेव' शेपम् - स्थित्यतिरिक्त सर्वमपि तथैव असुरकुमारमकरणपठितमेवेति भावः । - अथ ज्योतिदेवानुत्पादयितुमाह- 'जइ जोडसियदेवे हितो' इत्यादि, 'जइजोइसियदेवेर्हितो उववज्र्ज्जति' हे भदन्व ! यदि ज्योतिष्कदेवेभ्य आगत्य पृथिबीकायिकेपृत्पद्यन्ते तदा- 'कि चंद विमाणजोड़सियदेवेहिंतो उववज्जंति' किं चन्द्रविमान ज्योतिष्क देवेभ्य आगत्योत्पचन्ते अथवा 'जान ताराविमाणजोइ- सियदेवेर्हितो उपज्जेति यावत ताराविमानज्योतिष्कदेवेभ्य आगत्योत्प चहां पल्योपम की है, असुरकुमार के प्रकरण में ऐसी स्थिति नहीं है, तो यद्यपि स्थिति जघन्य से दशहजार वर्ष की है, परन्तु उत्कृष्ट से वह सातिरेक एक सागरोपम की है, इस प्रकार असुरकुमार के प्रकरण गत स्थिति की अपेक्षा इस प्रकरणगत स्थिति में अन्तर आता है, 'सेसं तहेव' स्थिति से अतिरिक्त और सब कथन असुरकुमार के प्रकरण में कहे गये अनुसार ही हैं, अब ज्योतिष्कदेवों की वक्तव्यता कहते है- 'यहाँ गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'जह जोइलियदेवेर्हितो उववज्जति' हे भदन्त | यदि ज्योतिष्कदेवों से आकर के पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो' किं चंदद्विमाणजो हसियदेवेहिंतो उवज्जंति' क्या वे चन्द्रविमान ज्योतिष्कों से आकर के वहां उत्पन्न होते हैं' अथवा 'जाव ताराविमाणजोइंसियदेवेर्हितो उववज्जंति' यावत् ताराविमान ज्योतिष्कों से आकरके ઉત્કૃષ્ટથી એક પત્યેાપમની છે. અસુરકુમારના પ્રકરણમાં તેની સ્થિતિ જધન્યથી દસ હજાર વર્ષોંની કહી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી તે સાતિરેક—કંઈક વધારે એક સાગરોપમની કહી છે. આ રીતે અસુરકુમારાના પ્રકરણમાં કહેલ સ્થિતિની श्रभिंतभां नुहायशु भावे छे. 'सेसं तहेव' स्थितिना उथन शिवायनु' माडीनु તમામ કથન અસુરકુમારના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. હવે ગૌતમસ્વામી असुने येवु पूछे छे है ' जइ जोइसियदेवेहितो स्ववज्जति' हे भगवन् ले દેવભવ જ્યાતિષિક દેવામાંથી આવીને પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે 'किं चंदविमाणजोइसियदेवेहिं तो उववज्र्ज्जति' शु तेो यद्रविमान ज्योतिष्ठ देवेाभांथी भावीने त्यां उत्पन्न थाय छे ? 'जाब ताराविमाणजोइम्रिय'देवेहि तो उववज्जति' यावत् तारा विमान ज्योतिष्ट देवाभांथी भावीने त्यां
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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