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________________ 17 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १२९ 'उक्को सेर्ण पंच धणुसयाई' उत्कर्षेण शरीरावगाहना पञ्च धनुःशतानि अन्यस संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रकरणवदेव ज्ञातव्यम् केवलं शरीरावगाहनां जघन्योत्कृष्टाभ्यां पञ्चधतुःशत प्रमाणाऽत्र गन्तव्येति । 'ठिई अणुबंधो जहन्नेणं yoचकोडी उकोसेण वि पुनकोडी' स्थितिरनुबन्धश्च जघन्येन पूर्वकोटि रुत्कृष्टतोsपि पूर्वकोटिरेव जघन्योत्कृष्टाभ्यां पूर्वकोटिममाणा स्थितिरनुबन्धय भवतीति 'सेसं राहेब' शेषं तथेव अस्यैवधिकगमेषु यत् यत् परिमाण संहननं श्याज्ञानाज्ञानादिकं कथितं तथैव सर्वमिहापि अन्तिमेषु त्रिष्वपि गमेषु ज्ञातव्यम् केवलमवगाहना स्थित्यनुबन्धेषु वैलक्षण्यं भवति तत् सूत्रे एव कथितम् जघन्यतो द्वे महणे उत्कृष्ट भवग्रहणानि इति । कालापेक्षयाऽनुबन्ध उपयुज्य ज्ञातव्यः । अवगाहना जघन्य से पांचसौ धनुष की है और 'उक्कोसेणं पंचधणु सपाई' उत्कृष्ट से भी वह पांचसी धनुष की है, तथा - 'ठिई अणुत्रो जहन्नेणं पुचकोडी कोसेण वि पुञ्चकोडी' स्थिति एवं अनुबन्ध भी यहां जघन्य से और उत्कृष्ट से एक पूर्वफोटि रूप है, इसके अतिरिक्त 'सेसं तहेव' परिमाण संहनन लेश्या ज्ञानाज्ञान आदि का कथन जैसा इसीके औधिक तीन गमोंमें किया है वैसा ही इन अन्तिम तीनों गमों में भी समझ लेना चाहिये । केवल अवगाहना, स्थिति और अनुबन्ध इनमें अन्तर है, सो वह सूत्रकार ने स्वयं सूत्र में प्रकट ही कर दिया है, काय संवेध यहाँ भवकी अपेक्षा दो भवों को ग्रहण करनेरूप जघन्य से है और आठ भवों को ग्रहण करने रूप उत्कृष्ट से है । तथा काल की अपेक्षा उपयोग लगाकर कह देना चाहिये । 'उकोसेणं पंच धणुसयाई' उत्कृष्टथी पशु ते पांयसेो धनुषनी छे तथा 'ठिई अणुबंधो जहन्नेणं पुव्वकोडी उद्योसेण वि पुब्वकोडी' स्थिति भने अनुमध પણ અહિયાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વકાટિ રૂપ છે, આ શિવાયનુ 'सेसं तं 'चेन' परिमाणु, सांडुनन, बेश्या, ज्ञान अज्ञान, विगेरे समधीतु કથન અહિયાં સન્ની પંચેન્દ્રિય તિયચ્ ચેાનિવાળા જીવાના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. કેવળ અવગાહના, સ્થિતિ અને અનુબંધમાં જ જુદાપણુ ં છે. તે સૂત્રકારે પાતે જ સૂત્રમાં જ પ્રગટ કરી દીધુ છે. કાયસ વેધ અહિયાં લવની અપેક્ષાથી એ ભવાના ગ્રહણુ રૂપ જઘન્યથી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી આઠભવેાને ગ્રહણ કરવા રૂપ છે. भ० १७
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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