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________________ ૨૨૮ भगवतीसूत्रे संज्ञिपञ्चन्द्रियतिरश्चः यथा संज्ञिपश्चेन्द्रियतिरश्चो मध्यमानयो गमाः कथिता स्तथैव संज्ञिमनुष्यस्यापि मध्यमानयो गमा वर्णनीया ज्ञातव्याश्च 'सेसं तं चेव' शेपं देवसंज्ञिपञ्चेन्द्रियस्य यत् यत् प्रतिपादितम् परिमाणलेश्यादिकं कथितम् संज्ञिमनुष्यस्यापि परिमाणादिकं सर्वमवगन्तव्यनिति। जघन्यस्थितिकसंवन्धिनिगमत्रये यथा लब्धिः कथिता तथैवेहापि वत्ताच्या सा च लब्धिः संज्ञिपश्चेन्द्रियसूत्रादेव अवगन्तव्या। 'पच्छिल्ला तिनि गमगा जहा एयरस चेव ओहिया' पधिमाश्चरमाः सप्तमाष्टम नवमगमकाः, यथा एतस्य संज्ञिमनुष्यस्यौधिका आधास्त्रयो गमाः कथिता स्तथैव ते चरमानगो गमा ज्ञातव्याः। अस्यौघिकगमापेक्षया य?लक्षण्यम् तदर्शयति -'णवर' इत्यादि, 'णवरं मोगाहणा जानेणे पंचधणुसयाई नररम्- केवलं शरीरावगाहना जघन्येन पञ्च धनुः शतानि पञ्च धनु ममाणा जघन्यावगाहना ज्ञातव्या, आदि ही लब्धि-प्राप्ति-संज्ञि पंचेन्द्रिय तिर्यश्च के मध्य के तीन गमकों के जैसा ही है, 'सेसं तं चेव' बाकी का परिमाणे लेश्या आदि का कम संज्ञि पश्चेन्द्रिय लियश्च के प्रकरण जैसा ही है, जघन्ध स्थितिक सन्धी तीन गमों में जैसी उत्पाद परिमाण आदि की लब्धि कही गई है उसी प्रकार से वह लब्धि संज्ञि पञ्चेन्द्रिय सूत्र से ही जाननी चाहिये, 'पछिल्ला तिन्नि गमगा जहा एयरस चेव ओहिया' तथा सातवां गम, आठवां गम और नौवां गम थे तीन अन्त के गम इसी संज्ञी मनुष्य के आदि के औधिक तीन गम जैसे कहें गये हैं ऐसा समझना चाहिये, परन्तु इसके औधिक गमों की अपेक्षा जो इनमें वैलक्षण्य है उसे प्रकट करने के लिये सूत्रकार. 'णवरं ओगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई' इस सूत्र द्वारा यहाँ प्रकट करते हैं कि यहां शरीर की ति-यना मध्यना र गभाना ४थन प्रभारी छ, 'सेस' त' चेव' माहीत કથન એટલે કે પરિમાણું, વેશ્યા, વિગેરે સંબંધીનું કથન સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચના પ્રકરણમાં કહ્યા પ્રમાણે છે. જઘન્ય સ્થિતિ સંબંધી ત્રણ ગામમાં ર પ્રમાણે ઉત્પાત, પરિમાણ વિગેરેની લબ્ધિ-પ્રાપ્તિના સ બંધમાં કથન કર્યું છે. એ જ રીતે તે લબ્ધિ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયના સૂત્રથી જ સમજવી. पछिल्ला तिन्नि गमगा जहाँ एयरस चेव ओहिया' तथा सातमा मामा અને નવમે ગામ આ ત્રણે છેલ્લા ગમ અસ ફ્રિ મનુષ્યના પહેલા ત્રણ ગમના કથન પ્રમાણે છે તેમ સમજવું. પરંતુ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિ. યના ગમાની અપેક્ષાથી આમાં જે જુદા પણું છે, તે બતાવવા માટેનું સૂત્રકાર - 'वर ओगाहणा जहण्णेणं पंच धणुयाई' मा सूत्र द्वारा प्रगट उता કહે છે કે–અહિયાં શરીરની અવગાહુના જઘન્યથી પાંચસે ધનુષની છે, અને
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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