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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सु०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् ११७ ___टीका-'जइ मणुस्से हितो उपपज्जति' यदि मनुष्येभ्य आगत्य पृथिवीकायिकेपूत्पद्यन्ते तदा-किं सन्निमणुस्सेहितो उवरज्जति असन्निमणुस्से हितो उववज्जति' कि संज्ञिमनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते अथवा असंज्ञिमनुष्येभ्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह-'गीयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सनिमणुस्से. हितो उववज्जति' संज्ञिमनुष्येभ्य उत्पधन्ते क्या-'असन्निमणुस्से हितो वि उवव. जंति' असंज्ञिमनुष्येभ्योऽपि उत्पद्यन्ते पृथिवीकायिकेषु समुत्पित्सवो जीवा संज्ञिमनुष्येभ्योऽथ च असंज्ञिमनुष्येभ्योऽपि आगत्य समुत्पद्यन्ते इत्युत्तरम् । 'असन्निमणुस्से णं भंते !' असंज्ञिमनुष्यः खलु भदन्त ! 'जे भविए पुढवीकाइएसु उववज्जित्तए' यो भव्या योग्यः पृथिवीकायिकेषु उत्पत्तुम् । ‘से णं भंते' स खल्ल भदन्त । 'केवइयकालटिएसु उववज्जेज्जा' कियत्कालस्थितिकेषु पृथिवी
'जइ मणुस्सेहितो उववज्जति' इत्यादि टीकार्थ-यदि ऐसा कहा जावे कि पृथिवीकायिक जीव मनुष्यों से आ. करके उत्पन्न होता है तो 'किंसनिमणुस्सेहितो उववज्जति असनिमणुस्सेहितो उववज्जति' क्या वह संज्ञी मनुष्यों से आकर के उत्पन्न होता है ? अथवा असंज्ञि मनुष्यों से आकर के उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-हे गौतम ! 'सन्निमणुस्से हितो उववज्जति असनिमणुस्सेहितो वि उववज्जति' पृथिवीकायिक में उत्पन्न होने योग्य जीव संज्ञी मनुष्यों से भी आकरके उत्पन्न होते हैं और असंज्ञी मनुष्यों से भी आकर के उत्पन्न होते हैं । अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'असन्नि मणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढवीकाइएसु उववज्जित्तए' हे भदन्त । जो असंज्ञी मनुष्य पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से णं भंते ! केवड्यकालडिह०' वह मनुष्य कितने काल की स्थितिवाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- एवं
'जइ मणुस्सेहितो उववज्जति' त्याह
ટીકાર્ય–જો એમ કહેવામાં આવે કે–પૃથ્વીકાયિક મનુષ્યમાંથી भावीन पन थाय छ, । "कि सन्निमणुस्सेहितो उववज्जति असन्निमणुस्सेहितो उववज्जंति' शु सभी मनुष्यमाथी मावीन पन्त थाय छ ? આ અસંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં अ गौतभावाभान ४ छ - गौतम! 'सन्नि मणुस्सेहितो उववन्जति, असन्निमणुस्सेहिं तो वि उववज्जति' पृथ्वी विमi G+ थवाने योग्य એ જીવ સંજ્ઞી મનુષ્યમાંથી પણ આવીને ઉત્પન્ન થાય છે અને અસંશી મનુષ્યમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે, ફરીથી ગૌતમસ્વામી પ્રભુને એવું पूछे छे -'असन्निसणुस्से णं भंते ! जे भविए पुढवीकाइएसु उववज्जित्तए'. लगन् रे मससी मनुष्य पृथ्वी यिमi G4rr थवान योग्य छ, 'से गं