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________________ मदतीसूत्रे १०४ आगत्योत्पद्यन्ते तदा - किं संखेज्जवासाज्य सन्निपचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उज्जेति किं संरुपेयत्र युिष्करांशिपञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्यः सकाशादागत्योस्पद्यन्ते अथवा - 'असंखेनवासा उवसनिपंचिदियतिरिक्खजोगिए हिंयो उबवजेति' असंख्येयत्रसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यः सकाशादागत्योत्पयन्ते इति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'संखेजवासास निपचिदियतिरिकलजोणिएडिंडो उववज्र्ज्जति' संख्येव युष्कसंज्ञिपश्ञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्यः सकाशादागत्य अपयन्ते, 'णो असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिदियतिरिक्ख जोणिएर्हितो उवरज्जेति' नो असंख्येयवर्षायुकसंज्ञि पञ्चन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्वयन्ते इत्युत्तरम् | 'जड़ असं } अथ गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि हे भदन्त ! यदि वह पृथिवी कायिक संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर के उत्पन्न होता है तो क्या वह संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर के उत्पन्न होता है? या असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यच से आकर के उत्पन्न होता है ? यही विषय - 'किं संखेज्जवासाज्यसन्निपंचिदियतिरिक्खजोणिएर्हितो उबवज्जंति, असंखेज्जवासाउयसभि पंचिदियतिरिक्खजोणिएहितो जववज्जति' इस सूत्रपाठ द्वारा प्रदर्शित किया गया है, इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम! 'संखेज्जवासाज्य सनिपचिदियतिरिक्खजोणिएड़ितो उचचज्जंति' वह पृथिवीकायिक संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों से आकर के उत्पन्न होता है, 'णो असंखेज्जवासाज्यसन्निपचिदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्र्ज्जति' असंख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रि હવે ગૌત:સ્વામી પ્રભુને એવુ' પૂછે છે કે—હે ભગવન્ ને તે પૃથ્વિકાયિક સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિય ચામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું તે સખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સની પ'ચેન્દ્રિય તિય ચામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે અસëાત વર્ષની આયુષ્યવાળા સ'જ્ઞી પ'ચેન્દ્રિય તિય ચામાંથી भावीने उत्पन्न थाय छे ? या विषय- किं संखेज्जवासज्य खन्नि पंचिदियतिरि क्खजोणिएहि तो उववज्जति, असंखेज्जवासाज्य सन्निपं चि' द्दियतिरिक्ख जोणिएहि तो उववज्र्ज्जति' या सूत्रपाथी मतान्यो छे. या प्रश्नना उत्तरमा प्रभु डे - 'गोयमा ! डे गौतम! 'सडिज्जवोखाउयसन्निपनि दिय तिरिक्खजोणिएहि तो उबવર્ષાંતિ તે પૃથ્વીકાય સરતવર્ષની માયુષ્યવાળા સજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિય ચામાંથી भावीने उत्पन्न थाय छे. 'जो असंखेज्जवासा उयस त्रिपचिदियतिरिक जोणिएहिंतो सवत्रजंति' असभ्यात वर्षांनी आयुष्यवाजा संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यशोभांथी
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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