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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २० उ. ७ सू० १ घन्धस्वरूपनिरूपणम् अभिनिवोधिकज्ञानादारभ्य केवलज्ञानविषयाणां, तथा मन्यज्ञानादारभ्य विभा ज्ञानविषयाणां कतिविधो बन्धो भवतीति मनः । भगवानाह - 'गोगमा ' हत्यादि, 'गोमा' हे गौतम! 'तिविहे बंधे पन्नते' त्रिविधो बन्धःमः, प्रकारभेदमेव दर्शयति- 'तंजहा' इति, 'त जहा' तद्यथा - 'जीवपभोगबंधे, अनंतरबंधे, परंपरघे' जीवमयोगबन्ध', अनन्तरबन्ध परंपरबन्धः, जीवमयोगानन्वम्परम्परभेदेन त्रिविधो चन्धो नारकादिवैमानिकान्नजीवानां सम्बन्धिविभज्ञानfayयान्तानां भवतीति भगवत उत्तरमिति । safai संग्रहाथाद्वयं दृश्यते 'जीवओगवंत्रे, अनंतर परंपरे च चोद्रव्ये । पगडी उदर वेए. दंमणमोहे चरिते य ॥ १ ॥ ओरालियवे उन्द्रिय, आहारगतेयकम्मए चैव । सन्ना लेस्सा दिट्ठी णाणाणाणेसु तन्निस ॥२॥ २३ दण्डकों का संग्रह हुआ है और द्वितीय यावत्पद से आभिनिबोधिकज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के विषयों का तथा मत्यज्ञान से लेकर श्रुतज्ञान तक के विषयों का संग्रह हुआ है सो पांच ज्ञानों का और इनके विषयों का तथा ३ अज्ञानों का और इनके विषयों का कितने प्रकार का बंध कहा गया है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुने कहा है कि- 'गोमा । तिविहे बंधे पन्नत्ते' हे गौतम! इनका और इनके विषयों का आत्मा के साथ संबंघरूप ग्रंथ जीवप्रयोगबंध, अनन्तरयन्ध और परम्पराबन्ध के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। यहां कहीं२ ये दो संग्रहगाधाएँ लिखी हुई मिलती है- 'जीवपओगबंधे' इत्यादि । तात्पर्य इन दो गाथाओं का केवल इतना ही है कि बन्ध जो तीन प्रकार का कहा गया है वह जीवप्रयोगवन्ध, अनन्तरबन्ध और परम्परा बन्ध के भेद से कहा गया है और वह ज्ञानावरणीय आदि कर्मप्रकृतियों વિગેરે ૨૩ તેવીસ દડકાના સંગ્રહ થયેલ છે. અને શીક્ત યાવત્ રાખ્તથી આાભિતિએ ધિક જ્ઞાનથી લઈને કેવળજ્ઞાન સુધીના વિષયેાને તથા કૃતિ અજ્ઞાનથી લઈને શ્રત ઋજ્ઞાન સુધીના વિયેના સકાય થયેા છે તે પાંચ જ્ઞાનાના તથા તેના વિષયેાના તથા ૩ ત્રણ અજ્ઞાનાના અને તેના વિષયે ના કેટલા પ્રકારને ખંધ કહેવામાં આવેલ છે? આ प्रश्रना ઉત્તમાં પ્રભુ કહે छे है-'गोमा ! पिजने' से गौतम! तेन अने तेनाविश्ये. ना આત્માની સાથેના સબંધ રૂપ ધરજપ્રયાગબધ, અનનતંત્ર ધ અને પરપરાળાના ભેદથી જુ પ્રકારના કરેલ છે. આ સબંધમાં ટે આઈ સ્થળે આ બે સંગાથા લખેરી મળે છે. લીવો-ને કદિ
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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