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________________ प्रमेयद्रिका टीका श० २० उ. ७ ० १ बन्धस्वरूपनिरूपणम् ४३ पन्नते' एवमामिनिवोधिज्ञानविषयस्य भदन्त ! कतिविधो वन्धः मज्ञप्तः, एवम् 'जाव केवळ नाग विसयस्म अन्नाणविसयस्प मड अन्नाणवि. समस्त अन्नाणविषयस्प विभंगणाणविसयरस' यावत्, यावत्पदेन श्रुताज्ञानावधिज्ञानमन. पर्यवज्ञानविवयस्य केवलज्ञानविस् मन्यज्ञानविपपत्य ज्ञानविवयस्य विज्ञानविषयस्य, एपामपि प्रश्नवाक्यं स्वयं भणितव्यम्, उत्तरनाइ - 'एए सचेर्सि पगाण' एतेषां सर्वेषां पदानाम् 'तिविहे बंधे पन्नत्ते' त्रिविधो बन्धः पज्ञप्तः, नाज्ञानादारभ्य केवलज्ञानविषयपर्यन्तानां तथा मत्यज्ञानादारभ्य विभङ्गज्ञानविपर्यन्तानां विकारको बन्धो भवतीत्युत्तरं भगवतः । 'सव्वे वि एए चउन्नीस दंडगा भविव्या' सर्वेऽप्येते भंते! कवि बंधे पन्नत्ते' हे भदन्त ! आभिनिरोधक ज्ञान के विषय का यंत्र कितने प्रकार का कहा गया है ? यहां आभिनियोधिकज्ञान ( मतिज्ञान) के विषय का जो विवक्षित जीव के साथ सम्बन्ध है वही धरूप से विवक्षित हुआ है । 'जाब केवलनाणविसयस्स' महअन्नाणविसयस्स सुग अन्नागविमयस्स विभंगणाणदिसग्रस्त' इसी प्रकार से यावत् केवलज्ञान विषय का, मतिअज्ञान के विषय का, श्रुतअज्ञान के विषय का, विभंगज्ञान के विषय का अपने २ आधारभूत जीव के साथ संबंध धन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? इन सव प्रश्नों के उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'एएसि सन्वेसि पगाणं तिचिहे बंधे पण्णत्ते' इन सब ज्ञानों का और उनके विषय का तथा अज्ञानों का और उनके विषय का जो अपने २ आधाररूप जीव के साथ संबंध है वह जीवप्रयोगादिबंध के भेद से तीन प्रकार का कहा गया है। तात्पर्य ऐसा है कि श्रुतज्ञान से लेकर केवलज्ञान तक के ज्ञानों के विषय का ભગવત્ આિિનાધિકજ્ઞાન વિષયને અંધ કેટલા પ્રકારના કહ્યો છે? અહિયાં આભિનિષેાધિકજ્ઞાન સબંધી જીવની સાથે જે સંબંધ છે, તેજ બધ રૂપે अणु शये है. 'जाब केवलनाणविसयत्स मइदन्नाणविसयासतुय ना. विषयास विभंगणाणविसयरस' गेट रीते यावत् देवलज्ञान विषयमा भति યજ્ઞાનના વિષયના શ્રુતઅજ્ઞાનના વિષયને અને વિલંગન નના વિષયના પાત પેાતાના આધાર રૂપ જીવની સાથેને સંબંધ રૂપ બંધ કેટલા પ્રકારને કહેલ છે? આ તમામ પ્રશ્નોના ઉત્તરમાં બુ કહે છે કે‘પશ્ચિમ નૈનિયાન विविदे यंत्रे पण्णत्ते' या दभागज्ञानानी भने सेना विषय ताना આધાર રૂપ જીવની સાથે મધ છે તે યાદિ બંધના ભેદથી ત્રણ પ્રકારના કહે છે. કહેવાનું ત એ છે કે-નજ્ઞાનથી લઈને કેવજ્ઞાન સુધીના જ્ઞાનેાના વિયના સાધરૂપ બન્ધ અને મનિઅજ્ઞાનથી લઈ ને વિભગજ્ઞાન સુધીના અજ્ઞાનાના વિષયના પૈતપેતાના આધારભૂત જીવના સંબ ́ધરૂપ ભોંધ ત્રણ
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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