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________________ my प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० १०७ १०१ बन्धस्वरूपनिरूपणम् 'तिविहे बंधे पन्नत्ते' त्रिविध:-त्रिपकारका बन्धः प्राप्तः-फयित इत्युत्तरम् , प्रकारमेदगेव दर्शयति 'तं जहा' तघया-'जीवप्पयोग बंधे जीवप्रयोगवन्धः, बध्यते आत्मा येन असौ बन्धः स च त्रिविधः तत्र प्रथमो जीवप्रयोगवन्धः जीवस्य आत्मनः प्रयोगेण-मनोवाकायच्यापारेण बन्धः कर्मपुद्गलानाम् आन्मप्रदेशेषु संश्लेषो यद्धस्पृष्ठादिभावकरणं जीवपयोगबन्ध इति द्वितीयो यथा-'अणंतरवंधे' अनन्तरवन्धः येषां कर्मपुद्गलानां वद्धानां सतामनन्नरः समयो वर्तते तेपा. मनन्तरवन्धः कथयते । तृतीयो यथा-परंपरबंधे परम्परयन्धा, येषां न बद्धानां कर्मपुद्गलानां द्वितीयादिमायो वर्तने ने परम्परावन्ध इति नाम भवति । फर्मपुद्गलेषु बद्रेणु सत्र तत्पश्चात् धनगरे अन्तरदिने समये यो बन्धी गवत् सः अनन्तरवन्ध इति भावः । यच कालान्यानन्तरं द्वितीयादिमायेपु यो वन्धो भवेत् स पारपरावन्धः करते । एकद्वयादिगमयसायानेन गो नन्धः है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है-'गोयना । तिषिहे बंधे पन्नते' हे गौतम ! पन्ध्र तीन प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे-'जीवप्पोनबंधे' जीवप्रयोगबंध 'अणंतरबो' अनन्तरयन्ध और 'परंपरबंधे परम्पराबंध, आत्मा जिसके द्वारा बंधती है-परतंत्र रोनी है-उसका नाम बंध हैआत्मा के मन, वचन और काय के व्यापार से कर्मपुदलों का जो क्षीर नीर के जैसा उसके साथ एक क्षेत्रावगाह आदि रूप मरपन्ध होता है इसका नाम जीवश्योगधंध है यह जीवप्रयोगध पद्ध, स्पष्ट आदिरूप होता है कर्मपुद्गलों के पन्ध होने के बाद अनन्तर समय में जो घंध होता है वह अनन्तर घंध है, तथा कर्मपुतलों के यन्ध होने के याद द्वितीयादि समयों में जो बंध होता है यह परंपराध है, भा प्रशन उत्तर प्रभु से छे-'गोयमा ! तिविहे पंधे पण्णत्ते से गौतम! - ayारने वाला भावत है. 'तं जहा' मा प्रभाव है. 'जीवपगेगवंधे' प्रयोग 'अणतरयंधे' मनन्त मन पर परब ५२२५२ मामानी भन, क्यन भने सशरना च्यापारथा કપલે જે હીર–નીરની જેમ તેની સાથે એક વાવગાડ રૂપ સંબંધ થાય છે, તેનું નામ છવયેગબંધ છે. ૧ આ જીવપ્રયોગબંધ પૃષ્ઠ વિગેરે રૂપે ય છે. કર્મનો બંધ થયા પછીના અન્તર વગરના સમયમાં જે બંધ થાય છે, તે અનન્સરબંધ છે ૨ તથા કમલેના બંધ થયા પછી હિતાયાદિ સમયે માં જે બંધ થાય છે તે પરંપરાબંધ છે. ૩
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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